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१२२ उत्ताध्ययनसूत्रम् (अध्ययन २९) पकरेइ, बहुपएसग्गाओ अप्पपएसग्गाओ पकरेइ, आउयं च णं कम सिया बधइ, सियो नो बधइ । असायावेयणिज्ज च णं कम्म ना भुज्जो भुज्जो उवचिणाइ, अणाइयं च णं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरतं संसारकंतार खिप्पामेव वीइबयइ ॥ २२ ॥ धम्मकहाए ण भते जीवे किं जणयइ ? ध. निज्जर जणयई, धम्मकहाए ण पवयणं पभावेई, पवयणपभावेणं जीवे आगमेसस्स भद्दत्ताए कम निबधइ ॥ २३ ॥ सुयस्स आराहणयाए ण भते जीवे किं जणयइ ? सु० अन्नाणं खवेइ, न य संकिलिस्सइ ।। २४ ।। एगग्गमणसंनिवेसणया ए ण भते जीवे किं जणयई ? ए० चित्तनिराहं करेइ ॥ २५ ॥ संजमएणं भते जीवे किं जणयइ ? स० अणण्हयत्त जणयइ ॥ २६ ॥ तवेणं भंते जीवे कि जणयइ ? तवेणं वादाण जणयइ ॥ २७ ॥ वोदाणेणं भते जीवे किं जणयइ ? वा० अकिरिय जणयइ अकिरियाए भवित्ता तओ पच्छा सिज्जइ, बुझइ मुच्चइ परिनिव्वायइ, सव्वदुक्खाणमत करेइ ॥ २८ ।। सुहसाएणं भते जीवे किं जणयइ ?