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________________ ( ३६ ) जिसमें बयान है कि दारुवनमें शिवजी के भक्त ब्राह्मणलोग शिवजीके ध्यानमें परायण रहते थे, एक दिन वे ब्राह्मणलोग समिदादि- लकडी आदि लेने वास्ते वनमें गये थे, पिछेसे उस दारु वनमें जहां ब्राह्मण ऋषियोंकी स्त्रीएं रहती थीं वहां महादेवजी नग्न हो कर हाथमें लिंग पकड करं अति तेजस्वी रूप बना कर कटाक्षसे उन स्त्रीयोंके मनोंको मोहित करते हुए आये, उन स्त्रीयोंमेंसे कोई स्त्री तो कामके वशीभूत होकर शिवजीको आलिंगन करती हुई, तो कोई हाथ पकडकर हसने लगी, उस समय पर ब्राह्मण भी वहां आ गये, और उस कुचेष्टाको देखकर उन्होंको वडा भारी क्रोध चडा और शाप दिया कि तेरा लिंग टूट कर पृथ्वी पर पडो, उसी वख्त लिंग टूट कर जमीन पर गिर पड़ा इत्यादि वयान है, वांवो नीचेके श्लोक, " दारु नाम वनं श्रेष्ठं, तत्रासऋषिसत्तमाः । शिवभक्ताः सदा नित्यं, शिवध्यानपरायणाः ॥६॥ त्रिकालं शिवपूजां च, कुर्वन्ति स्म निरन्तरम् । स्तोत्रैर्नानाविधैर्देवं, मन्त्रैर्वा ऋषिसत्तमाः ॥ ७ ।। एवं सेवां प्रकुर्वन्तो, ध्यानमार्गपरायणाः । ते कदाचिद्वने याताः, समिदाहरणाय च ॥८॥ एतस्मिन्नन्तरे साक्षा-च्छंकरो नीललोहितः । विरूपं च समास्थाय, परीक्षार्थं समागतः ॥९॥ दिगम्बरोऽतितेजस्वी, भूतिभूषणभूषितः । चेष्टां चैव कटाक्षं च, हस्ते लिगं च धारयन् ॥ १० ॥ मनांसि मोहयन् स्त्रीणा- माजगाम हरः स्वयम् । तं दृष्ट्वा ऋषिपन्यताः, परं बारामुपागनाः ॥ ११ ॥
SR No.022530
Book TitleMat Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages236
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size17 MB
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