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________________ (१९८) (सायण-भाष्य ।) (१) वाग्देवतायै पुरुषं पूरकं स्थूलशरोर मित्यर्थः । (२) आशायै अलभ्यवस्तु विषय तृष्णाभिमानिमानिन्यजामि निवृत्तरजस्का भोगायोग्यां स्त्रियम् । (३) प्रतीक्षायै लब्धव्यस्य वस्तुनो लाभप्रतीक्षणा भिमानिन्यै कुमारोमनूढां कन्यामालभते । ब्राह्मणादयः कुमार्यन्ताः प्रोक्ता मनुष्य विशेषरुपाः पश. बोऽस्मिन् पुरुषमेधे पश्चाहे सोमयागविशेषे मध्यमेऽहनि सवनीयपशुभिः समुचित्यालव्धव्याः । 'पूनाका छपा हुआ कृष्णयजुर्वेदका तैत्तिरीय ब्राह्मण' पृष्ठ-९७२-९७३ । भावार्थ-(१) वाग्देवताके लिये पुरुषका आलंभ अर्थात् वध किया जाता है. (२) तृष्णाभिमानिनीदेवता-आशा उसके लिये जामि अर्थात् ऋतुधर्म जिसका निवृत्त हुआ हो और भोग करनेके योग्य न हो ऐसी स्त्रीका आलंभ (वध ) किया जाता है. (३) प्रतीक्षाके लिये कुमारी अर्थात् जिसकी शादी न हुई हो ऐसी लडकीका आलंभ-वध किया जावे. इस 'पुरुषमेषपंचाहसोमयागमें ' ब्राह्माणादि कुमारी पर्यत मनुष्य विशेष रूप पशुओंका आलंभ वध किया जावे. ___अब कोई कहे कि 'आलंभ' शब्दका अर्थ हिंसा है इसमें कोई प्रमाण है ? तो उसके उत्तरमें विदित हो कि" आश्वलायनीय गृह्यसूत्र, गार्य नारायणीय वृत्ति ' के पृष्ठ ८५ वे में लिखा है कि
SR No.022530
Book TitleMat Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages236
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size17 MB
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