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________________ (१४) वराहतोको निरगा-दंगुष्ठपरिमाणकः ॥ १८ ॥" मैं जिससे पैदा हुआ हूं वो ईश मेरी मदद करो ऐसा विचार करते हुए ब्रह्माजीके नाकसे अंगुष्ट प्रमाण वराहका बच्चा निकला. तथा थोडी ही देरमें वराहजी वडे हो गए और जलमें जाकर पृथ्वीको ले आए तथा हिरणाक्षका शरीर चीर डाला, उसके रुधिरकी कीचमें भरी हुई अपनी तुंडसे लीला करने लगा. ___ इस उपरके लेखसे बुद्धिमानोंकुं विचार करना चाहिये कि लोहुसे भरे हुए मुखसे क्रीडा करना, किसीको चीर डाल कर हष्ट होना, सामान्य आदमीका काम है या परमात्माका ?. पद्मपुराण प्रथम सृष्टि खंड अध्याय ३ पत्र ७ में लिखा है कि"ब्रह्मणोऽभून्महाक्रोध-स्त्रोलोक्यदहनक्षमः । तस्य क्रोधात्समुद्भूतं, ज्वालामालावदीपितम् ॥ १७१ ।। ब्रह्मणस्तु तदा ज्योति-स्त्रैलोक्यमखिलं दहत् । भृकुटिकुटिलात् तस्य, ललाटात् क्रोधदीपितात् ॥ १७२ ।। समुत्पन्नस्तदा रुद्रो, मध्याह्नार्कसमप्रभः । अर्धनारीनरवपुः, प्रचण्डोऽतिशरीरवान् ॥ १७३ ॥ विभजात्मानमित्युक्त्वा, तं ब्रह्मान्तर्दधे ततः । तथोक्तोऽसौ द्विधा स्त्रोत्वं, पुरुषत्वं तथाकरोत् ।। १७४ ॥" इत्यादि वर्णन भी तद्दन युक्ति शून्य है. १ उपरके संस्कृत श्लोकोंका इतना ही संक्षिप्तार्थ है कि ब्रह्माजीके कपालसे महादेवजी आधे स्त्रीरूपों और आधे पुरुष रूपमें पैदा हुए.
SR No.022530
Book TitleMat Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages236
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size17 MB
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