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________________ (९२) उपरोक्त कर्म अपने सेवकोंके तथा पार्वतीजीके देखते हुए न बनता और कामीका तो सरदार ही कह सकते हैं कि जिसका दौडते दौडते वीर्य स्खलित हो गया, बतलाईये ! स्वयं ऐसे महामोहसे घायल हुए हुए देव, भक्तोंका क्या उद्धार कर सकेंगे?, उद्धार करना तो दूर रहा मगर अंग्रेज सरकार जैसा राज्य होता तो उस मोहिनो स्त्रीसे भुजाओंसे पकड कर जो बलात्कार किया था उसका फल स्वयं कारागृहमां बद्ध हो कर भुगतना पडता, बस-इससे इतना ही सबक-पाठ लेनेका है कि ऐसे देवोंको जब तक सेवते रहोगे संसारमें ही भटकते फिरोगे, इस लिये सम्पूर्ण वीतराग श्रीजिन देवका ही शरण लेना चाहिये. भागवत दशम स्कंध २८ वे अध्यायमें कासुरको महादेवजीने उसके कहने माफिक वर दिया किजिसके शिर पर तूं हाथ रक्खेगा वोही मर जायगा, तब उसने पार्वती पर लुब्ध होकर महादेवजी के मस्तक उपर हाथ रखनेका इरादा किया, तब महादेवजी भयभीत होकर वहांसे भागे असुर भी उनके पीछे लगा, शिवजी डर कर स्वर्ग तक भागे और पृथ्वीका जहां तक अंत है वहां तक भागे, फिर उत्तर दिशामें भाग कर गये, उस समय उपायको न जान कर संपूर्ण देवता चूप हो गए, इसके उपरांत प्रकाशमान मायासे परे वैकुंठ धाममें शिवजी गए, तब दूरसे ही नारायण भगवान्ने शिवजीके पीछे दौडे चले आते कासुरको देख कर अपनी योगमायासे ब्रह्मचारीका वेष धर लिया, कुश हाथमें लिये भगवान् नम्र हो अभिवादन कर उससे बोले कि हे शकुनिके पुत्र ! मुजे निश्चय खेद है तूं इतनी दूर क्यों आया ?, थोडी देर विश्राम लें, क्यों कि समस्त कामनाओंका देनेवाला यह
SR No.022530
Book TitleMat Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages236
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size17 MB
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