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________________ 262 Studies in Umāsvāti भी इसी तरह की एक गाथा पायी जाती है। नन्दीसूत्र 60, गा. 72-77 में यह कुछ शब्द-व्यत्यय के साथ मिलती है। तत्त्वार्थवार्त्तिक (त. वा.) में 1.19.2 पर भी उद्धृत पायी जाती हैउक्तं चबंधं पडिएयत्तं लक्खणदो हवइ तस्स णाणत्वं। तम्हा अमुक्तिभावो णेयंतो होइ जीवस्स। इति। 2.7.269 इस गाथा का स्रोत स्थल भी अभी तक अज्ञात है। यह गाथा प्रभाचन्द्र विरचित तत्त्वार्थवृत्तिपदम् में सूत्र संख्या 1/27 पर भी 'उक्तञ्च' करके उद्धृत की गई है। अन्तर मात्र यही है, वहां 'होइ जीवस्स' के स्थान पर 'हवदि जीवाणं' पाठ मिलता है। सूत्र संख्या 2.10 की व्याख्या में पाँच गाथाएँ 'उक्तं च' करके उद्धृत है। ये पाँच गाथाएँ इस प्रकार हैं1. उक्तं च- 'सव्वे वि पुग्गला खलु कमसो मुव्बुज्झिया या जीवेण। असई अणंतखुत्तो पुग्गलपरियट्टणसंसारे।।' 2.10.275 2. उक्तं च- 'सव्वम्मि लोयखेत्ते कमसो तं णत्थि जं ण उत्पण्णं। ओगाहणाए बहुसो परिभमिदो खेत्तसंसारे।।' 2.10.2763. उक्तं च- 'उस्सप्पिपणि अवसप्पिणि समया वलियासु णिखसेसासु। जादो मुदो य बहुसो भमणेण दु कालसंसारे।।' 2.10.277 4. उक्तं च-'णिरयादिजहण्णादिसु जाव दु उवरिल्लया दु गवेज्जा। मिच्छत्तसंसिदेण दु बहुसो वि भवट्ठिदी भमिदा'।। 2.10.278 5. उक्तं च– 'सव्वा पयडिट्ठिदीओ अणुभाग पदेसबंधठाणाणि। मिच्छत्तसंसिदेण य भमिदा पुण भावसंसारे।।' 2.10.279 ये पाँचों गाथाएँ किंचित पाठान्तर और क्रमभेद सहित कुंदकुंदाचार्य कृत रचना के रूप में प्रसिद्ध बारस अणुवेक्खा में क्रमशः गाथा संख्या 25 से 29 पर मिलती है। तथा षड्खण्डागम की धवलाटीका में भी क्रमशः 1.5.4/18, 1.5.4/23, 1.5.4/24, 1.5.4/25 एवं 1.5.4/26 पर उद्धृत मिलती है। परन्तु इनमें से कोई भी गाथा त.वा. में उद्धृत नहीं की गई है। इसमें दो गाथाएँ ऐसी हैं जो 'आगमप्रामाण्याच्च तथाऽध्यवसेयम्। तदुक्तम्'
SR No.022529
Book TitleStudies In Umasvati And His Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Tripathi, Ashokkumar Singh
PublisherBhogilal Laherchand Institute of Indology
Publication Year2016
Total Pages300
LanguageEnglish, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_English & Book_Devnagari
File Size23 MB
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