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Studies in Umāsvāti
धर्मकथा वैराग्य मार्ग में स्थिरता के लिए प्रवचन-भक्ति, शास्त्र-सम्पद् में उत्साह और संसार से विरक्त जनों के साथ सम्पर्क के अतिरिक्त धर्मकथा भी वैराग्य की स्थिरता के लिए आवश्यक है। धर्मकथा के चार प्रकार प्रातिपादित हैं1. आक्षेपणी, 2. विक्षेपणी, 3. संवेदनी और 4. निवेदनी। जो कथा जीवों को धमार्ग की ओर आकर्षित करती है वह अक्षेपणी कथा तथा जो कामभोगों से विमुख करती है वह विक्षेपणी धर्मकथा है। जिस कथा से संसार का सम्यग्बोध हो एवं उसमें दुःख का अनुभव हो उसे संवेदनी तथा कामभोग से वैराग्य उत्पन्न करने वाली कथा निर्वेदनी कहलाती है। ये चारों कथाएँ तो अपनाने योग्य हैं, किन्तु स्त्री, भक्त, चोर और जनपद कथा परित्याज्य हैं।
शास्त्र का लक्षण प्रशमरतिप्रकरण में शास्त्र का लक्षण धर्म में अनुशासित कर दुःख से त्राण करना स्वीकार किया गया है। उमास्वाति कहते हैं कि 'शास्' धातु अनुशासन अर्थ में पढ़ी जाती है 'त्रैङ्' धातु पालन अर्थ में निश्चित है।24 उमास्वाति ने शास्त्र को रागादि के शासन का साधन बताते हुए कहा है कि जो रागद्वेष से उद्धत चित्त वाले मनुष्यों को धर्म में अनुशासित करे तथा दु:ख से रक्षा करे वही शास्त्र है
यस्माद्रागद्वेषोद्धतचित्तान् समनुशास्ति सद्धर्मे।।
संत्रायते च दु:खाच्छास्त्रमिति निरुच्यते सद्भिः।।18715 प्रशमरतिप्रकरण और तत्त्वार्थसूत्र : पारस्परिक साम्य प्रशमरतिप्रकरण एवं तत्त्वार्थसूत्र में अनेक स्थलों पर पर्याप्त साम्य है। यह साम्य कहीं शब्दशः भी प्रकट हुआ है, जो यह सिद्ध करता है कि तत्त्वार्थसूत्र एवं प्रशमरति के रचयिता एक ही हैं। साम्य इतना स्फुट है कि उससे इनकी एककर्तृकता में सन्देह नहीं रह जाता है। तत्त्वार्थसूत्र के तृतीय एवं चतुर्थ अध्याय के अतिरिक्त शेष सभी अध्यायों की कुछ विषयवस्तु एवं सूत्रों की तुलना प्रशमरतिप्रकरण से की जा सकती है। यहाँ पर अध्याय क्रम से तुलना प्रस्तुत हैअध्याय-1 (i) सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः। - तत्त्वार्थसूत्र, 1.1
सम्यक्त्वज्ञानचारित्रसम्पदः साधनानि मोक्षस्य। तास्वेकतराऽभावेऽपि मोक्षमार्गोऽप्यसिद्धिकरः।। -प्रशमरतिप्रकरण, 230