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आचार्य कुन्दकुन्द और गृद्धपिच्छ उमास्वामी : एक विमर्श 203 7. प्रवचनसार की भूमिका, पृ. 10-251 8. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, खण्ड 2, पृ. 153 । 9. तत्त्वार्थसूत्र (विवेचनसहित), विवेचक – पण्डित सुखलाल संघवी, पृ. 15 10. सर्वार्थसिद्धि, प्रस्तावना, पृ. 65-8। 11. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, खण्ड 2, पृ. 149-50। 12. जैन, शीतलचन्द्र, 'आचार्य कुन्दकुन्द का तत्त्वार्थसूत्र पर प्रभाव', महावीर
जयन्ती स्मारिका, 1988, पृ. 1/105 । 13. मग्गो मग्गफलं ति य दुविहं जिणसासणे समक्खादं।
मग्गो मोक्ख उवायो तस्स फलं होइ णिव्वाणं।। णियमेण य जं कज्ज तण्णियमं णाणदसणचरित्तं।
विवरीयपरिहरत्थं भणिदं खलु सारमिदि वयणं।। – नियमसार, गाथा 2-3 । 14. न्यायावतार वार्तिक की प्रस्तावना। 15. पंचास्तिकाय : एक समीक्षात्मक अध्ययन, नामक लेख, आचार्य कुन्दकुन्द
राष्ट्रीय संगोष्ठी (सरधना, 1990) के प्रकाशित आलेख। 16. गांग, सुषमा, आचार्य कुन्दकुन्द की दार्शनिक दृष्टि, दिल्ली, पृ. 45।। 17. आत्माराम, तत्त्वार्थसूत्र-जैनागम समन्वय।