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हिंदीबंगानुवादसहितंपरीक्षामुखं । ७१
बुद्धि आदिकी सिद्धि हो सकती है। जैसा कि प्रत्यक्ष अनुमान आगम उपमान अर्थापत्ति और अभाव इन है प्रमाणों में प्रत्यक्ष अनुमान आदिको लेकर एक २ अधिक प्रमाणमानने वाले बौद्ध सांख्य नैयायिक प्राभाकर और ( वैदान्तिको व ) भट्टको प्रत्यक्ष आदिमें अंतर्भूत न होनेसे व्याप्ति ज्ञान जुदा ही मानना पड़ता है एवं व्याप्तिके जुदेमाननेसे 'दोही प्रमाण हैं ' अथवा 'तीन ही प्रमाण है यह उनका कहना संख्याभास कहा जाता है । यदि चार्वाक कहै अनुमानसे पर लोक आदिका निषेध करेंगे तो उसे प्रत्यक्षमें जुदा अनुमान प्रमाण स्वीकार करना पड़ेगा एवं प्रत्यक्षही एक प्रमाण है यह उनका कथन विलकुल संख्याभास सिद्ध हो जायगा । जैसा कि - बौद्ध आदि व्याप्ति की सिद्धिके लिये तर्क एक जुदाही प्रमाण मानते हैं और तर्क मानसे प्रमाण दाही अथवा तीन आदिही है यह कथन उनका संख्याभास समझा जाता है । यदि बौद्ध आदि यह कह तर्कको स्वीकारतो करते हैं परंतु वह प्रमाण नहिं यह भी उनका कथन मिथ्या है क्योंकि जो प्रमाण नहिं माना जाता उससे वस्तु की व्यवस्था कदापि नहिं होसकती यदि तर्क प्रमाण न माना जायगा तो उससे कदापि व्याप्तिकीं सिद्धि नहीं हो सकती । तथा तर्क आदि को प्रमाणमाननेमें दूसरा यह भी हेतु है - कि जिनका प्रतिभास भिन्न २ होता है वे जुदे प्रमाण माने जाते जाते हैं प्रत्यक्ष आदिसे तर्क आदिका प्रतिभास विलक्षण है इस