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हिंदीबंगानुवादसहितपरीक्षामुखं । ६३ कारण सर्वज्ञत्व ओ वकृत्व एकस्थल थाकिन पार । एतदुभयेर विरोध नाइ ॥ ३३ ॥ ३४ ॥
अकिचित्करहेत्वाभास___ सिद्धे प्रत्यक्षादिबाधिते च साध्ये हेतुरकिंचित्करः। सिद्धः श्रावणः शब्दः शब्दत्वात् । किंचिदकरणात्। यथानुष्णोऽग्निद्रव्यत्वादित्यादौ किंचित्कर्तुमशक्यत्वात् । लक्षण एवासौ दोषो व्युत्पन्नपूयोगस्य पक्षदोषेणैव दुष्टत्वात् ॥ ३५ ॥ ३६ ॥ ३७ ॥ ३८ ॥ ३९ ॥
हिंदी जो साध्य स्वयं सिद्ध हो अथवा प्रत्यक्ष आदिसे बाधित हो उस साध्यकी सिद्धिके लिये यदि हेतुका प्रयोग किया जाय तो वह हेतु कुछ न करनेकेकारण अकिंचित्कर हेत्वा भास कहा जाता है जैसे शब्द, कानसे सुना जाता है क्योंकि वह शब्द है यहां पर शब्दमें श्रावणत्व स्वयं सिद्ध है इसलिये शब्दमें श्रावणत्वकी सिद्धिकोलिये प्रयुक्त शब्दत्व हेतु अकिंचित्कर हेत्वाभास कहा जाता है । क्योंकि यह हेतु यहां कुछ करता नहिं । (इसे सिद्धिसाध्यवाले अाँकीचकर हेतुका उदाहरण समझना चाहिये)। जिसप्रकार अग्नि शीतल है क्योंकि वह द्रव्य है यहां पर अग्निकी शीतलता प्रत्यक्षबाधित है इसलिये द्रव्यत्व हेतु, कुछ भी न करनेसे आकंचित्कर हेत्वाभास कहा जाता है (सिद्धसाध्य अकिंचित्कर हेत्वाभास