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सनातनजैनग्रंथमालायां
की तरह कर्ता करण क्रियाकी भी प्रतीति होती है । अर्थात्'मैं अपनेद्वारा घटको जानता हूं। इस प्रतीतिमें जैसा कर्म (घट) ज्ञानका विषय मालूम पडता है उसीप्रकार (मैं) कर्ता (अपनेद्वारा) करण (जानता हूं) क्रिया, ये भी ज्ञानके विषय होते हैं ॥८-९॥ ___बंगला-आमि स्वीय ज्ञानेरद्वारा घटके जानि, एइ वाक्ये ये रूप घटेर ज्ञान हय, सेइरूप कर्ता, करण एवं क्रियारओ प्रतीति ( ज्ञानेर विषय ) हय ॥ ८-९ ॥
शब्दानुच्चारणेऽपि स्वस्यानुभवनमर्थवत् ॥१०॥ - हिंदी-जिसप्रकार घटपटादि शब्दोंका उच्चारण न करनेपर भी घटपटादि पदार्थोंका ज्ञान हो जाता है, उसीप्रकार 'ज्ञान' ऐसा शब्द न कहनेपर भी ज्ञानका ज्ञान हो जाता है ॥ १० ॥ __वंगला- शब्दर उच्चारण ना करिलेओ. घटपटप्रभृति पदार्थेर येमन ज्ञान हइते पारे, सेइरूप 'ज्ञान' एइ शब्देर उच्चारण ना करिलेओ ज्ञानेर ज्ञान हुइया जाय ॥ १० ॥
को वा तत्प्रतिभासिनमथेमध्यक्षामिच्छंस्तदेव तथा नेच्छेत् ॥ ११ ॥ प्रदीपवत् ॥ १२ ॥
हिंदी-घट पट आदि पदार्थ और अपना प्रकाशक होनेसे जैसा दीपक स्वपरप्रकाशक समझा जाता है, उसीप्रकार ज्ञान भी घट पट आदि पदार्थोंका और अपना जाननेवाला है, इसलिये उसे भी स्वपरस्वरूपका जाननेवाला समझना चाहिये क्योंकि ऐसा कौनं लौकिक वा परीक्षक है जो ज्ञानसे जाने पदार्थको तो प्रत्यक्षका विषय माने और ज्ञानको प्रत्यक्षका विषय न माने ॥११-१२॥