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हिंदीवंगानुवादसहितं परीक्षामुखं । १९ हैं वा नहीं ' इसपकार संदेहयुक्त बना देता है क्योंकि दृष्टांत यदि संदेह करानेवाला न हो तौ उपनय और निगमन क्यों माने जांय ? अर्थात् उपनय और निगमनका प्रयोग, हेतु और साध्यके अस्तित्वमें संदेह निवारणकरनेकेलिये ही किया जाता है अत एव दृष्टांतको अनुमानका अंग न मानना ही ठीक है ॥ ४१-४२-४३ ॥
बंगला-एवं व्याप्तिर स्मरणार्थओ दृष्टांतेर प्रयोग करा कार्यकारक नाइ । कारण,-साध्येर संगे अविनाभावित्वेन निश्चित हेतुर प्रयोगद्वारा व्याप्तिर स्मरण हइया जाय अपितु से कथित दृष्टांत साध्यविशिष्ट पर्वतप्रभृति धर्मीर मध्ये साध्य ओ हेतुके पर्वतप्रभृति धर्मीते 'साध्य ओ हेतुर अस्तित्व आछे कि नाई। एरूप संदेहयुक्त करिया देय । केनना-दृष्टांत यदि संदेहकारक ना हइत ताहाहइले उपनय ओ निगमन केन स्वीकार करा हय ? अर्थात्-हेतु एवं साध्येर अस्तित्वे संदेहनिवारण करिबार जन्यइ उपनय ओ निगमनेर प्रयोग करा हय । अत एव दृष्टांतके अनुमानेर अंग स्वीकार करा कोनओ प्रकार उचित हय ना ॥४१-४२-४३ ॥
न च ते तदंगे साध्यधर्मिणि हेतुसाध्ययोर्वचना.
देवासंशयात् ॥ ४४ ॥ हिंदी-उपनय और निगमन भी अनुमानके अंग नहीं हैं क्योंकि साध्ययुक्त पर्वतादि धर्मी में हेतु और साध्यके कथन करनेसे ही हेतु और साध्यके ज्ञानमें किसीप्रकार संशय नहिं होता अर्थात् हेतु और साध्यके कथन करनेसे ही हेतु और साध्यके अस्तित्वका निश्चय हो जाता है ॥४४॥