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सनातनजैनग्रंथमालायां
प्रमाणद्वारा सिद्ध हइया छे । ' शब्द, परिणमन स्वभावी ' एटि उभयसिद्धधर्मार उदाहरण । ये हेतु एखाने शब्दरूप धर्मी उभयसिद्ध । एवं व्याप्तिकाले केवल धर्मइ साध्य हइया थाके । ये हेतु व्याप्तिकाले धर्म भिन्न धर्मीके साध्य स्वीकार करिले व्याप्ति इहते पारिबे ना ॥ ३०-३१-३२-३३ ।।
साध्यधर्माधारसंदेहापनोदाय गम्यमानस्यापि पक्षस्य वचनं ॥ ३४ ॥ साध्यधार्मिणि साधनधर्मावबोधनाय पक्षधर्मोपसंहारवत् ॥ ३५ ॥ को वा त्रिधा हेतुमुक्त्वा समर्थयमानो न पक्षयति ॥ ३६॥
__ हिंदी-साध्य विशिष्ट पर्वतादि धर्मीमें हेतुरूप धर्मको समझानेकेलिये जैसा उपनयका प्रयोग किया जाता है, उसीप्रकार साध्य (धर्म) के आधारमें संदेह दूर करनेकेलिये प्र. त्यक्षसिद्ध होनेपर भी पक्षका प्रयोग किया जाता है क्योंकि ऐसा कौन वादी प्रतिवादी है जो कार्य, व्यापक अनुपलंभ भेदसे तीन प्रकारका हेतु कहकर समर्थन करताहुवा भी पक्षका प्रयोग न करै ? अर्थात् सबको पक्षका प्रयोग करना ही पड़ेगा ॥ ३४-३५-३६ ॥
बंगला--साध्यविशिष्ट पर्वत प्रभृति धर्मीते हेतुरूप धर्मीके बुझाइबार जन्य येरूप उपनयेर प्रयोग करा जाइते छे, सेरूप साध्येर (धर्मेर ) अधिकरणे संदेहभंजन करिबारजन्य प्रतक्ष सिद्ध हइलेओ पक्षेर प्रयोग करा याइते छे । ये हेतु एरूप कोनओ वादी प्रतिवादी नाइ ये कार्य, व्यापक, अनुपलंभ भेदे तिनप्रकार हेतु उच्चारणपूर्वक समर्थन करियामो पक्षरे प्रयोग