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(by the powders of saffron, sandalwood etc.) and who have conquered (the powerful and intoxicated)elephants of senses.
अतुलानुत्कुटिकासान्विविक्त चित्तानखंडितस्वाध्यायान्। दक्षिणभावसमग्रान्, व्यपगतमदरागलोभशठमात्सर्यान् ।।7।।
जो (अतुलान्) उपमा रहित (उत्कुटिकासन्) उत्कुटिका आदि आसनों से तपश्चरण करते हैं, (विविक्त-चित्तान्) जिनका हृदय सदा पवित्र है, हेयोपादेय बुद्धि से जागृत है, (अखण्डित-स्वाध्यायान्) जो नियमित स्वाध्याय करने से अभीक्ष्णज्ञानोपयोगी हैं, (दक्षिणभाव-समग्रान्) जो सरल, छल-कपट रहित परिणामों से सहित हैं, (व्यपगत-मद-राग-लोभ-शठ-मात्सर्यान्) जो मान, राग, लोभ, अज्ञान और मात्सर्य/ईर्ष्याभाव से रहित हैं, उन आचार्यों को मेरा नमस्कार हो।
I pay my obeisance to supreme being Āchāryas - who performs (hard and difficult) austarities in various postures, (such as Padmāsan, khadagāsan etc.) whose minds and hearts are free from all cares; who study scriptures in a regular manner; whose volitions are free from deceit and who are devoid of pride, attachment, greed, ignorance and jealousy.
भिन्नार्तरौद्रक्षान्संभावित, धर्मशुक्लनिर्मल हृदयान्। नित्यंपिनद्धकुगतीन, पुण्यान्गण्योदयान्विलीनगार वचर्यान्।।8।।
(भिन्न-आर्त्त-रौद्र-पक्षान्) जिन्होंने आर्त और रौद्रध्यान के पक्ष को नष्ट कर दिया है, (संभावित-धर्म्य-शुक्ल-निर्मल-हदयान) जिनका हृदय यथायोग्य धर्म्यध्यान व शुक्लध्यान से निर्मल है, (नित्यं-पिनद्ध-कुगतीन) जिन्होंने नरक आदि कुगतियों के द्वार को सदा के लिये बन्द कर दिया है, (पुण्यान्) जो पुण्य रूप हैं, (गण्य-उदयान्) जिनका तप व ऋद्धि आदि का अभ्युदय गणनीय, प्रशंसनीय व स्तुत्य है (विलीन-गारव-चर्यान्) जिनके रस-ऋद्धि और सात इन तीन गारवों/अहंकारों का विलय हो चुका है, उन आचार्यों को मैं नमस्कार करता हूँ।
I pay my obeisance to supreme being Āchāryas - who have defeated/destroyed painful meditation and wicked meditation; whose minds and hearts have been purified by righteous meditation and pure meditation; who have shut/closed the gates of hell and other lower grades of life forever; who are virtuous; whose fruitioning of virtuous karmas is praiseworthy and who are free from all the three kinds of pride.
90 . Gems of Jaina Wisdom-IX