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आचार्य भक्ति (Acharya Bhakti) सिद्ध-गुण-स्तुति निरता-नुभूत-रुषाग्नि-जालबहुलविशेषान्। गुप्तिभिरभिसंपूर्णान् मुक्ति युतःसत्यवचनलक्षितभावान्।।।।।
(सिद्धगुण-स्तुति-निरतान्) जो सिद्ध परमेष्ठी भगवन्तों के गुणों की स्तुति में सदा लीन रहते हैं, (उद्धृत-रुषाग्निजाल-बहुल-विशेषान्) जिन्होंने क्रोध रूपी अग्नि समूह के अनन्तानुबंधी आदि अनेक विशेष भेदों को नष्ट कर दिया है, (गुप्तिभिः अभिसम्पूर्णान्) जो गुप्तियों से परिपूर्ण हैं, (मुक्ति युक्तः) जो मुक्ति से सम्बद्ध हैं या मुक्ति लक्ष्मी से सदा सम्बन्ध रखने वाले हैं, (सत्य-वचन-लक्षित-भावान्) सत्य वचनों से जिनके प्रशस्त, निर्मल भावों का परिचय प्राप्त होता है, ऐसे आचार्य परमेष्ठी भगवन्तों को (अभिनौमि) मैं नमस्कार करता हूँ।
I pay my obeisance to supreme being Achāryas - who are always immersed in the adoration of the merits of the supremebeing Siddhas; who have destroyed various kinds of the passion of anger e.g. infinite anger; who are well disciplined by three disciplines; who are in constant contact with the goddess of salvation and whose fine faultless volitions are apparent by his truthful speech/words.
मुनिमाहात्म्य विशेषान् जिनशासनसत्प्रदीपभासुरमूर्तीन्। सिद्धिं प्रपित्सुमनसो, बद्धजोविपुलमूलघातनकुशलान्।।2।।
(मुनि-माहात्म्य-विशेषान) जो मुनियों के महात्म्य विशेष को प्राप्त हैं अर्थात् जिन्हें मुनियों का विशिष्ट माहात्म्य प्राप्त है, (जिनशासन-सत् प्रदीप-भासुर-मूर्तीन्) जिनशासन रूपी समीचीन दीपक के प्रकाश से जिनका शरीर दैदीप्यमान है अथवा जिनका दैदीप्यमान शरीर जिनशासन को प्रकाशित करने के लिये समीचीन दीपकवत् है, (सिद्धि प्रपित्सुमनसः) जिनका उत्तम, शुभ मन सिद्धि की प्राप्ति को चाहता है तथा जो (बद्ध रजः-विपुलमूल-घातन-कुशलान्) बंधे हुए कर्मों के विशाल मूल कारणों को घातने में कुशल हैं; ऐसे उन आचार्य भगवन्तों को (अभिनौमि) मैं मन-वचन-काय से नमस्कार करता हूँ।
I pay my obeisance to supreme being Achāryas- who are graced by the special glories of the states of saints; whose body is manifested by the light of the lamp of the governance of Jina, whose excellently auspicious mind ever aspires for
Gems of Jaina Wisdom-IX 87