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(एवम्) इस प्रकार (समस्त-लोक-चक्षूषि) तीनों लोकों के नेत्र स्वरूप (ज्ञानानि) मति आदि ज्ञानों की (अभिष्टुवतः) स्तुति करने वाले (मे) मुझे (लघु) शीघ्र ही (ज्ञानफल) ज्ञान का फल (ज्ञान-ऋद्धिः) ज्ञान रूप ऋद्धि व (अच्यवनम् सौख्यम्) अविनाशी सुख (भवतात) प्राप्त हो।
May I soon attain the fruits of knowledge, i.e. attainment of knowledge and indestructible eternal bliss as the result of my aforementioned eulogies relating to sensory and other kinds of knowledges, which are like the eyes for knowing all the three universes.
इच्छामि मंते! सुद भत्ति-काउस्सग्गो कओ तस्सालोचेलं, अंगोवंगपइण्णए पाहुडय-परियम्म-सुत्त-पढमाणिओग-पुव्वगय-चूलिया चेव सुत्तत्थय-थुइ-धम्मकहाइयं णिच्चकालं अंचेमि, पूजेमि, वंदामि, णमस्सामि, दुक्खक्खओ, कम्मक्खओ बोहिलाहो सुगइ-गमणं, समाहि-मरणं, जिण-गुण-संपत्ति होदु मझं।
(भंते) हे भगवन्! मैंने (सुदभत्ति-काउस्सग्गो कओ) श्रुतभक्ति सम्बन्धी कायोत्सर्ग किया। (तस्सालोचेउं इच्छामि) उसकी आलोचना करने की मैं इच्छा करता हूँ। (अंगोवंगपइण्णए) अंग, उपांग, प्रकीर्णक, (पाहुडय) प्राभृत, (परियम्म) परिकर्म, (सुत्त) सूत्र, (पढमाणिओग) प्रथमानुयोग, (पुव्वगय) पूर्वगत, (चूलिया) चूलिका, (चेव) तथा (सुत्तत्थयथुइ) सूत्र, स्तव, स्तुति व (धम्मकहाइय) धर्मकथा आदि की (णिच्चकाल) नित्यकाल/सदा (अच्चेमि) अर्चा करता हूँ, (पुज्जेमि) पूजा करता हूँ, (वंदामि) नमस्कार करता हूँ। (इनकी स्तुति, पूजा आदि के फलस्वरूप) मेरे (दुक्खक्खओ) दुःखों का क्षय हो, (सुगइगमण) सुगति में गमन हो, (समाहिमरण) समाधिमरण हो; (मज्झ) मुझे (जिनगुणसंपत्ति) जिनेन्द्र देव के गुणों का लाभ हो।
___Marginal note (anchalika):0, lord! I have performed body mortification relating to scriptural knowledge. I wish to criticise it. I every day regularly rever/worship/venerate and bow down to - organs (anga), sub-organs (upānga), misleneous works (prakyrnaka), treatises (prābhrat) parikarma, obeisance by me. This I do in order to destroy my miseries and karmas and to attain three jewels, attain higher grade of life and die with equanimity. I finally pray for the riches of the attributes of shri Jinendra deva to be kindly give to me.
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Gems of Jaina Wisdom-IX