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I pay obeisance to all the five kinds of drastivāda anga i.e. parikarma sutra, prathamanuyoga, purvagatā and chulikā.
पूर्वगतं तु चतुर्दशधोदित-मुत्पादपूर्व-माद्यमहम्। आग्रायणीय-मीडे पुरु-वीर्यानुप्रवादं च।10।। संततमहमभिवन्दे तथास्ति-नास्ति प्रवादपूर्वं च। ज्ञानप्रवाद-सत्यप्रवाद-मात्मप्रवादं च।।11।। कर्मप्रवाद-मीडेऽथ प्रत्याख्यान-नामधेयं च। दशमं विद्याधारं पृथुविद्यानुप्रवादं च।।12।। कल्याण-नामधेयं प्राणावायं क्रियाविशालं च। अथ लोकबिंदुसारं वन्दे लोकाग्रसारपदम् ।।3।।
(पूर्वगतं तु चतुर्दशधा उदितम्) दृष्टिवाद के 5 भेद हैं उनमें पूर्वगत 14 प्रकार का कहा गया है। (अहम्) मैं (आद्यम्) सर्वप्रथम (उत्पादपूर्वम्, आग्रायणीय पुरुवीर्यानुप्रवादं च) उत्पादपूर्व, आग्रायणीय पूर्व और पुरुवीर्यानुवाद पूर्व को (ईडे) नमस्कार करता हूँ। (तथा) उसी तरह (अहम्) मैं (अस्ति-नास्ति प्रवादपूर्व, ज्ञानप्रवाद-सत्य प्रवादम् आत्मप्रवादं च) अस्ति-नास्ति प्रवाद पूर्व, ज्ञानप्रवाद पूर्व, सत्यप्रवाद पूर्व और आत्मप्रवाद पूर्व को भी (संतत) सदा/सतत/निरन्तर (अभिवन्दे) पूर्णरूपेण मन-वचन-काय से नमस्कार करता हूँ।
(अथ) उसके पश्चात् मैं (कर्मप्रवादम्, प्रत्याख्यानामधेयं च, दशमं विद्याधारं पृथुविद्यानुप्रवादं च) कर्मप्रवाद पूर्व और प्रत्याख्यान पूर्व तथा जो अनेक विद्याओं का आधारभूत है ऐसे दशवें विद्यानुवाद पूर्व की (ईडे) मैं स्तुति करता हूँ। - (अथ) उसके पश्चात् (कल्याण नामधेय) कल्याणवाद नाम पूर्व (प्राणावाय) प्राणावाद (क्रियाविशाल) क्रियाविशाल (च) और (लोक-अग्र-सार-पदम्) मुक्ति-पद की सारभूत क्रियाओं का आधारभूत (लोकबिन्दुसारं वन्दे) लोकबिन्दुसार की मैं वन्दना करता हूँ।
Drastivaad is of five kinds. Of them purvagatā has been mentioned to be of forteen kinds :- utpadapurva, agrāyaniya purva and puruviryānu pravād. Similarly I always pay obeisance to the purvas named astināsti pravād purva, jnān pravād purva, satya pravād purva and ātma pravād purva.
Thereafter I respectfully eulogies - karmapravāda purva, prātyakhyān purva and vidyānuvādapurva (that is the base of many sciences). Hereafter I adore and pay best regards to
62 • Gems of Jaina Wisdom-IX