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(भुवनेषु) तीनों लोकों में (प्रवृत्ताः) विराजमान (धुतिमण्डल-भासुर- अंग-यष्टीः) कान्ति-मंडल से देदीप्यमान शरीर (यष्टि) अर्थात् शरीर रूपी लकड़ी से युक्त, (वपुषा अप्रतिमाः) स्वरूप या तेज से उपमातीत (जिनोत्तमाना) जिनेन्द्र देव की (प्रतिमाः) प्रतिमाओं को (विभूतये) अनन्त चतुष्टय आदि रूप अर्हन्त देव की सम्पदा की प्राप्ति के लिये अथवा स्वर्ग, मुक्ति रूपी पुण्य सम्पदा की प्राप्ति के लिये (वपुषा वन्दमानः) शरीर से नमस्कार करता हुआ (प्राज्जलिः अस्मि) मैं अन्जलिबद्ध हूँ।
I pay my obeisance with my body and folded hands to the idols of Jina, installed in the three universes, glittering/shining with the spheres of lustre having wooden bodies, matchlessly glamorous in order to acquire/earn the attributes of shri Jineņdra deva including four infinites of Arihanta (pure and perfect souls with body) or the wealth of virtuous karmas, which yield celestial grade of life as well as the abode of salvation.
Note - The author has compared the body of shri Jinendra deva with that made of wood. It is so because one can cross the ocean of mundane existence with the help of wooden plank.
विगतायुध-विक्रिया-विभूषाः, प्रकृतिस्थाः कृतिनां जिनेश्वराणाम् । प्रतिमाः प्रतिमा-गृहेषुकान्त्याऽप्रतिमाः कल्मष-शान्तयेऽभिवन्दे।।3।।
(प्रतिमागृहेषु) कृत्रिम-अकृत्रिम चैत्यालयों में विराजमान/विद्यमान (कृतिना) कृतकृत्य (जिनेश्र्वराणाम्) जिनेन्द्र भगवान् की (विगत-आयुध-विक्रिया-विभूषाः) अस्त्र रहित, विकार रहित और आभूषण से रहित (प्रकृतिस्थाः) स्वाभाविक वीतराग मुद्रा में स्थित (कान्त्या अप्रतिमाः) दीप्ति से अनुपम (प्रतिमाः) जिनेन्द्र प्रतिमाओं को, मैं (कल्मष-शान्तये) पापों की शान्ति के लिये. (अभिवन्दे) सन्मुख होकर अच्छी तरह से मन-वचन-काय से नमस्कार करता हूँ।
I respectfully pay obeisance to the accomplish idols of shri Jinendra deva established in all the natural and artificial temples of Jinas - which are without weapons, without ornaments and faultless and which are in natural dispassionate postures, matchlessly lustreous; standing before them with my mind, speech and body in order to be free/liberated from all sins.
Gems of Jaina Wisdom-IX
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