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since beginingless times, satisfying each and every one in the holy assembly, (samava-sarana) accepting the lordship of all the three universes, over powering (conquering) the light of all the suns and moons by its own light and immersing every time in its own soul, by its own soul, to its own soul.
छिन्दन् शेषा-नशेषान्-निगल-बल-कलीं-स्तैरन्न्त-स्वभावैः, सूक्ष्मत्वाग्रयावगाहागुरु-लघुक-गुणैः क्षायिकैः शोभमानः। अन्यै-च्चान्य-व्यपोह-प्रवण-विषय-संप्राप्ति-लब्धि-प्रभावैरूमू-व्रज्या स्वभावात्, समय-मुपगतो धाम्नि सतिष्ठतेऽनये।।5।।
वे अरहंत देव (शेषान) बारहवें गुणस्थान में क्षय की गई घातिया कर्मों की प्रकृतियों से बची हुई (अशेषान्) समस्त अघातिया कर्मों की प्रकृतियों को जो (निगलबलकलीन) बेड़ी के समान बलवान हैं, (छिन्दन) नष्ट करते हुए/क्षय करके (तैः अनन्तस्वभावैः) उन अनन्त/अविनाशी स्वभाव को धारण करने वाले सम्यग्दर्शन
आदि गुणों से (शोभमानः) शोभायमान होते हैं। (च) और (अन्यैः) इसके (क्षायिकैः) कर्मों के अत्यन्त क्षय से उत्पन्न होने वाले (सूक्ष्मत्वाग्रयावगाहा-गुरुलघुगुणैः) सूक्ष्मत्व, अवगाहनत्व, अगुरुलघुत्व आदि गुणों से (शोभायमान) सुशोभित होते हैं एवं (अन्य-व्यपोह-प्रवण-विषय-संप्राप्ति-लब्धि-प्रभावैः) अन्य कर्म प्रकृतियों के क्षय से प्रकट शुद्ध आत्म स्वरूप की प्राप्ति रूप लब्धि के प्रभाव से (शोभमानः) शोभायमान होते हैं। पश्चात् (उर्ध्वव्रज्यास्वभावात्) उर्ध्वगमन स्वभाव से (समयम् उपगतः) एक समय में ही (अग्रये धाम्नि) लोक के अग्र भाग/सिद्धालय में (संतिष्ठते) सम्यक् प्रकार से स्थित हो जाते हैं।
Prior to the attainment of the supreme status Siddha (bodyless pure and perfect soul), the soul is necessarily bound to attain the status of Arihanta (pure and perfect soul with body). shri Arihanta deva attains this status by eliminating four fetal karmas, there after shri Arihanta deva destroys the four non-fatal karmas, which are as strong as fetters. In this way, shri Arihanta deva attains the supreme status of Siddha in a gradual manner and attains the four infinites (infinite knowledge, infinite perception, infinite prowess and infinite. bliss). Siddhas, consiquently are adorned with attributes namely subtleness, occupancy, non-gravity levity etc. and they are more glorified by attaimnents resulting from the elimination of other karmic energies. In the end such soul
Gems of Jaina wisdom-IX .29