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जीता है मोह और परिषहों को, (जितकषायाः) जीता है कषायों को, (जित - जन्ममरण - रोगाः) जीता है जन्म-मरण रूप रोगों को, (जितमात्सर्याः) जीता है ईर्ष्या भावों को ऐसे (जिनाः) जिनेन्द्र देव ( जयन्तु ) जयवन्त हों ।
May the non-attached lord, who has conquered denaturated volitions eg. Intoxication, joy, aversion, delusion, hardships, passions, the ailment of birth, oldage and death and jealousy etc. - be always victorius.
जयतु जिन वर्धमानस्त्रिभुवन-हित-धर्म-चक्र- नीरज-बन्धुः । त्रिदशपति - मुकुट - भासुर, चूड़ामणि- रश्मि रञ्जितारुण-चरणः ।।11।।
जो ( त्रिभुवनहित-धर्मचक्र - नीरजबन्धु) तीन लोकों के जीवों का हितकारक धर्मचक्र रूपी सूर्य हैं, जिनके ( अरुण - चरणः ) लाल-लाल चरण ( त्रिदश-पति-मुकुटभासुर - चूडामणि- रश्मि- रञ्जित) इन्द्र के मुकुट में दीप्तिमान चूडामणि की किरणों से अत्यधिक शोभायमान हैं, ऐसे (जिनवर्धमानः ) महावीर जिनेन्द्र ( जयतु ) जयवन्त हों ।
May lord Mahavir - who is the sun consisting of the wheel of religion that is beneficial to all the living beings of three universes, whose red lotus feet are accessibly glamorous due to the raise of the (chunamani) of the crown of the lord of gods - be ever victorious.
जय जय जय त्रैलोक्य - काण्ड - शोभि - शिखामणे, नुद नुद नुद स्वान्तं - ध्वान्तं जगत्-कमलार्क नः । नय नय नय स्वामिन्! शान्तिं नितान्त - मनन्तिमाम्, नहि नहि नहि त्राता, लोकैक - मित्र - भवत् परः । ।12 ।।
(त्रैलोक्य- काण्ड - शोभि- शिखामणे!) तीनों लोकों के समूह पर शोभायमान शिखामणि / चूड़ामणि स्वरूप हे भगवान् ! ( जय-जय-जय ) आपकी जय हो, जय हो, जय हो । (जगत्कमलाक) तीन जगत् के संसारी प्राणियों रूपी कमलों को विकसित करने के लिये सूर्य स्वरूप हे भगवान्! (नः स्वान्तध्वान्त) हमारे हृदय के अंधकार को (नुद- नुद-नुद) नष्ट कीजिये, नष्ट कीजिये, नष्ट कीजिये स्वामिन्! हे स्वामी ! (अनन्तिमां शान्ति) अविनाशी / शाश्वत शान्ति को ( नितान्त) अवश्य ही ( नय-नय- नय) प्राप्त कराइये, प्राप्त कराइये। (लोकैकमित्र !) हे लोक के एकमात्र मित्र ! (भवत्परः ) आपसे भिन्न/आपको छोड़कर दूसरा कोई ( त्राता) रक्षक ( नहि नहि नहि ) नहीं है, नहीं है, नहीं है ।
Gems of Jaina Wisdom-IX 17