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the city of Champāpura, after destroying all his sinful karmas and annihilating all the calamities (of mundane existance).
मुदितमतिबलमुरारि-प्रपूजितो जित कषायरिपुरथ जातः । वृहदूर्जयन्त-शिखरे, शिखामणिस्त्रिभुवनस्य- नेमिर्भगवान् ।। 31 ।।
(मुदित-मति - मुरारि-प्रपूजितः) बलदेव और श्रीकृष्ण ने जिनकी प्रसन्न चित हो पूजा की है (च) और (जित कषाय रिपुः) कषाय रूपी शत्रुओं को जिन्होंने जीत लिया है; ऐसे (नेमिः भगवान् ) नेमिनाथ भगवान् (वृहत्-उर्जयन्त-शिखरे) विशाल गिरनार पर्वत के शिखर पर ( त्रिभुवनस्य शिखामणिः जातः) तीन लोक के शिखामणि हुए अर्थात् उत्तम मुक्तिपद को प्राप्त हुए ।
Eulogy of lord Neminatha - Tirthāņkar Neminatha who was worshipped by shri Baldeva and shri Krisna, joyfully and who won over the great enemy of passions - attained salvation on the summit of mount Girnāra and there by became the top most jewel of all the three universes.
पवापुरवरसरसां मध्यगतः सिद्धिवृद्धितपसां महसाम । वीरो नीरदनादो, भूरि-गुणश्चारु शोभमास्पद-मगमत्।। 32।।
(सिद्धि-वृद्धि-तपसो महसां मध्यगतः) सिद्धि-वृद्धि-तप और तेज के मध्य में स्थित (नीरदनादः) मेघ की गर्जनासम जिनकी दिव्यध्वनि का शब्द है, (भूरिगुणः) अनन्त गुणों से युक्त (वीरः) अन्तिम तीर्थंकर भगवान महावीर ने (पावापुर वर सरसां मध्यगतः) पावापुर के उत्कृष्ट सरोवर के मध्य में स्थित हो, (चारुशोभ) उत्कृष्ट शोभा से युक्त (आस्पदम्) मुक्तिस्थल को (अगमत् ) प्राप्त किया ।
Eulogy of lord "Mahāvira" The last Tirthankara Mahavira seated in the midst of accomplishment, growth, austarities and magnificance, whose divine sound is like the roarings of clouds and who is adorened with endless merits/attributes went to the most beautiful abode of salvation, sitting in the center of the great grand water reservoir of Pāwāpura.
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Gems of Jaina Wisdom-IX 153