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अंचालिका (Marginal note)
इच्छामि भंते! परिणिव्वाणभक्ति काउस्सग्गो कओ तस्सालोचे ं, इमम्मि, अवसप्पिणीए चउत्थ समयस्य पच्छिमे भाए, आउट्ठमासहीणे वासचउक्कम्मि सेसकालम्मि, पावाए णयरीए कत्तिय मासस्य किण्ह चउदसिए रत्तीए सादीए, णक्खत्ते, पच्चूसे, भयवदो महदि महावीरो वड्ढमाणो सिद्धिं गदो । तिसुवि लोएसु, भवणवासिय - वाणविंतर जोयिसिय कप्पवासियत्ति चउव्विहा देवा सपरिवारा दिव्वेण चुण्णेण, दिव्वेण गंधेण, दिव्वेण अक्खेणा, दिव्वेण पुप्फेण, दिव्वेण चुण्णेण, दिव्वेण दीवेण, दिव्वेण धूवेण, दिव्वेण वासेण, णिच्चकालं अंचंति, पूजंति, वंदंति, णमंसंति परिणिव्वाण महाकल्लाण पुज्जं करंति । अहमवि इह संतो तत्थ संताइयं णिच्चकालं, अंचेमि, पूजोमि, वंदामि, मस्सामि, दुक्खक्खओ, कम्मक्खओ बोहिलाहो सुगइगमणं, समाहि-मरणं जिणगुणसंपत्ति होउ मज्झं ।
(भंते!) हे भगवान! मैंने (परिणिव्वाणभक्ति काउस्सग्गो कओ ) परिनिर्वाणभक्ति सम्बन्धी कायोत्सर्ग किया (तस्स आलोचेउं इच्छामि ) उसकी आलोचना करने की इच्छा करता हूँ । (इमम्मि अवसप्पिणीए चउत्थ समयस्य पच्छिमे भाए) इस अवसर्पिणी सम्बन्धी चतुर्थकाल के पिछले भाग में (आउट्ठमासहीणे वासचउक्कमि सेसकालम्मि) साढे तीन माह कम चार वर्ष काल शेष रहने पर (पावाए णयरीए कत्तियमासस्स किण्हचउद्दसिए रत्तीए सादीए णक्खते पच्चूसे भयवदो महदि महावीरो वड्ढमाणो सिद्धिं गदो) पावानगरी में कर्तिक मास की कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में स्वाति नक्षत्र रहते हुए प्रभात काल में भगवान् महति महावीर वर्धमान निर्वाण को प्राप्त हुए । (तिसुवि लोएसु भवणवासिय वाणविंतर जोयसियकप्पवासियत्ति चउव्विहा देवा सपरिवारा दिव्वेण ण्हाणेण, दिव्वेण गंधेध, दिव्वेण अक्खेण, दिळेण पुप्फेण, दिव्वेण चुण्णेण, दिव्वेण दीवेण, दिव्वेण धूवेण, दिव्वेण वासेण) तीनों लोकों में जो भवनवासी, वाणव्यन्तर, • ज्योतिषी और कल्पवासी इस प्रकार चार प्रकार के देव दिव्य जल, दिव्य गन्ध, दिव्य अक्षत, दिव्य पुष्प, दिव्य नैवेद्य, दिव्य दीप, दिव्य धूप, दिव्य फलों के द्वारा ( णिच्चकालं अंचेति, पुज्जति, णमंसंति, परिणिव्वाण - महाकल्लण पुज्जं करेंति) नित्यकाल अर्चा करते हैं, पूजा करते हैं, नमस्कार करते है, परिनिर्वाण महाकल्याण पूजा करते हैं । (अहमवि इह संतो तत्थ संताइयं। णिच्चकाल अंचमि पूजेमि, वंदामि, णमस्सामि) मैं भी यहां
Gems of Jaina Wisdom-IX◆ 139