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(जितमोहमल्लाः) जीत लिया है मोह रूपी मल्ल को जिन्होंने ऐसे (शेषास्तु ते जिनवराः ईशाः) जो शेष तीर्थंकर हैं, भगवान हैं, वे (ज्ञान-अर्क-भूरि-किरणैः लोकान् अवभास्य) ज्ञान रूपी सूर्य की अनेकानेक किरणों से लोकों को प्रकाशमान करके (सम्मेद-पर्वत-तले) सम्मेदाचल पर्वत पर (निरवधारित-सौख्यनिष्ठं परं स्थानं) अनन्त सुख से व्याप्त उत्कृष्ठ स्थान मोक्ष को (सम्अवापुः) अच्छी तरह से प्राप्त हुए।
The rest (twenty) Tirthankaraj, who conquered/ overpowered the great delusion, who obliged people in general by guiding and assisting them in marching on the path of salvation by the rays of sun of their perfect knowledge/omniscience-attained the supreme status of salvation on the tops/summits of the great holy mountain named shri Sammedāchal and there by attained infinite enternal bliss.
आद्यश्तुर्दशदिनैर्विनिवृत योगः, षष्ठेन निष्ठितकृतिर्जिन वर्धमानः। शेषाविधूत घनकर्म निबद्धपाशाः, मसेन ते यतिवरांस्त्वन्वियोगाः ।। 26 ।।
(आद्यः ) प्रथम तीर्थंकर वृषभदेव ने (चतुर्दशदिनैः विनिवृत्त योगः) चौदह दिनों द्वारा योग निरोध किया (जिन वर्द्धमानः) वर्द्धमान जिनेन्द्र ने (षष्ठेन-निष्ठित कृतिः) षष्ठोपवासी, बेला-बेला उपवास द्वारा योगों का निरोध किया (शेषा ते यतिवराः 'तु मासेन) शेष २२ तीर्थंकर एक माह के द्वारा योग निरोध कर (विधूत-घन-कर्म-निबद्ध-पाशाः) अत्यन्त दृढ़ कर्मबद्ध रूप जाल को नाश कर मुक्त (अभवन) हुए।
The first Tirthankar Risabhdeva perform the stoppage of yogas (vibrations of mind, speech and body) for period of forteen days. The last Tirthankar lord Vardhamaan perform stoppage of yoga (vibrations of mind, speech and body) for two days, prior to the completions of his age karma and the attainment of salvation. The rest twenty two Tirthaņkaras performed stoppage of yogas for one month and there by removing the strong net work of karmic bondages and there after attained salvation. -
Gems of Jaina Wisdom-IX – 133