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(उद्य) आज (शुद्ध-मनसा-क्रियया-वचोभिः) शुद्ध मन, वचन, क्रिया-काय से (परिणौमि) अच्छी तरह नमस्कार करता हूँ।
I, who keenly desire to do likewise pay my respectful obeisance to all the holy and auspicious places of salvation relating to the salvations/liberation of the pure and perfect souls with bodies ( Arihantas), cheif desciples/pontiffs of Tirthankaraj (ganadharaj), perfectknowers of scriptures (shrut kewalis) situated in Bhārat varsa of Jamboodweep with my pure mind, speech and body.
कैलाश शैलशिखरे परिनिर्वृतोऽसौ, शैलेशिभावमुपपद्य वृषो महात्मा। चम्पापुरे च वसुपूज्यसुतः सुधीमान, सिद्धिं परामुपगमो गतरागबन्धः।। 22।।
(शैलेशिभ्ज्ञावम् उपपद्य) अठारह हजार शीलों के स्वामीपने को प्राप्त करके (असौ महात्म वृषः) ये महान आत्मा वृभषदेव (कैलास-शैल-शिखरे) कैलाश पर्वत के शिखर पर (परिनिर्वृतः) निर्वाण को प्राप्त हुए। (गत-रागबन्धः सुधीमान्) राग के बन्ध से रहित अतिशय-ज्ञानी-केवलज्ञानी (वसुपूज्यसुतः) राजा वसुपूज्य के सुपुत्र-भगवान वासुपूज्य ने चम्पापुर में (परां सिद्धिं उपगतः) उत्कृष्ट सिद्धि को प्राप्त किया।
The great soul of shri Risabh deva lord of eighteen thousand rules of conduet, attained salvation on the top/ summit of mount kailāsh. Lord Bāsupujya - completely free from the sacles/fetters of attachment, omniscient/perfect knower, son of king Basupujya attained excellent salvation at champāpur.
यत्प्रार्थ्यते शिवमयं बिबुधेश्वराद्यैः पखण्डिभिश्च पमार्थगवेष शीलैः । नष्टाष्ट कर्म समये तदरिष्टनेमिः, संप्राप्तवान क्षितिधरे वृहदूर्जयन्ते।।23।।
(विबुधेश्वराद्यैः) इन्द्र आदि देवों के द्वारा (च) और (परमार्थ-गवेषशीलैपाखण्डिभिः) आत्मा की खोज करने वाले/मुक्ति की खोज करने वाले
Gems of Jaina wisdom-IX - 131