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Paramatma Prakash in Apabhransha
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225) बुझंतह परमत्थु जिय गुरु लहु अस्थि ण कोइ ।
जीवा सयल वि बंभु परु जेण वियाणइ सोइ ॥ ९४ ॥ 226) जो भत्तउ रयण-त्तयहँ तमु मुणि लक्खणु एउ।
अच्छउ कहिं वि कुडिल्लियइ सो तसु करइ ण भेउ ॥ ९५ ॥ 227) जीवहँ तिहुयण-संठियहँ मूढा भेउ करंति ।
केवल-णाणिं णाणि फुडु सयलु वि एक मुणंति ॥ ९६ ॥ 228) जीना सयल विणाण-मय जम्मण-मरण-विमुक।
जीव-पएसहि सयल सम सयल वि सगुणहि एक ॥ ९७ ॥ 229) जीवहँ लक्खणु जिणवरहि भासिउ दंसणणाणु ।
तेण ण किज्जइ भेउ तह जइ मणि जाउ विहाणु ॥ ९८॥ 230) बंभहँ भुवणि वसंता| जे णवि भेउ करति ।
ते परमप्प-पयासयर जोइय विमलु मुणंति ॥ ९९ ॥ 231) राय-दोस बे परिहरिवि जे सम जीव णियंति ।
ते सम-भावि परिट्टिया लहु णिवाणु लहंति ॥ १०॥ 232) जीवहँ दंसणु णाणु जिय लकवणु जाणइ जो जि।
देह-विभेएँ भेउ तह णाणि कि मण्णइ सो जि ॥ १०१ ॥ 233) देह-विभेयइँ जो कुणइ जीवहँ भेउ विचित्तु । ..
सो णवि लक्खणु मुणइ तह दसणु णाणु चरित्तु ।। १०२ ॥ 234) अंगइँ सुहुमइ बादर विहि-बसि होति जे वाल।
जिय पुणु सयल वि तित्तडा सव्वत्थ वि सय-काल ॥ १०३॥ 235) सत्तु वि मित्तु वि अप्पु परु जीव असेसु वि एइ।
एकु करेविणु जो मुणइ सो अप्पा जागेइ ॥ १०४।।