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________________ Paramatma Prakash in Apabhransha . 137 225) बुझंतह परमत्थु जिय गुरु लहु अस्थि ण कोइ । जीवा सयल वि बंभु परु जेण वियाणइ सोइ ॥ ९४ ॥ 226) जो भत्तउ रयण-त्तयहँ तमु मुणि लक्खणु एउ। अच्छउ कहिं वि कुडिल्लियइ सो तसु करइ ण भेउ ॥ ९५ ॥ 227) जीवहँ तिहुयण-संठियहँ मूढा भेउ करंति । केवल-णाणिं णाणि फुडु सयलु वि एक मुणंति ॥ ९६ ॥ 228) जीना सयल विणाण-मय जम्मण-मरण-विमुक। जीव-पएसहि सयल सम सयल वि सगुणहि एक ॥ ९७ ॥ 229) जीवहँ लक्खणु जिणवरहि भासिउ दंसणणाणु । तेण ण किज्जइ भेउ तह जइ मणि जाउ विहाणु ॥ ९८॥ 230) बंभहँ भुवणि वसंता| जे णवि भेउ करति । ते परमप्प-पयासयर जोइय विमलु मुणंति ॥ ९९ ॥ 231) राय-दोस बे परिहरिवि जे सम जीव णियंति । ते सम-भावि परिट्टिया लहु णिवाणु लहंति ॥ १०॥ 232) जीवहँ दंसणु णाणु जिय लकवणु जाणइ जो जि। देह-विभेएँ भेउ तह णाणि कि मण्णइ सो जि ॥ १०१ ॥ 233) देह-विभेयइँ जो कुणइ जीवहँ भेउ विचित्तु । .. सो णवि लक्खणु मुणइ तह दसणु णाणु चरित्तु ।। १०२ ॥ 234) अंगइँ सुहुमइ बादर विहि-बसि होति जे वाल। जिय पुणु सयल वि तित्तडा सव्वत्थ वि सय-काल ॥ १०३॥ 235) सत्तु वि मित्तु वि अप्पु परु जीव असेसु वि एइ। एकु करेविणु जो मुणइ सो अप्पा जागेइ ॥ १०४।।
SR No.022373
Book TitleSpiritual Enlightenment
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogindu Deva, A N Upadhye
PublisherRadiant Publishers
Publication Year2000
Total Pages162
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size10 MB
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