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________________ 120 Spiritual Enlightenment 33) देहादेवलि जो वसइ देउ अणाइ-अणंतु । ___ केवल-गाण-फुरंत-तणु सो परमप्पु णिभंतु ॥ ३३ ॥ 34) देहे वसंतु वि णवि छिवइ णियमें देहु वि जो जि। देहे छिप्पइ जो वि णवि मुणि परमप्पउ सो जि ॥ ३४ ॥ 35) जो सम-भाव-परिठियह जोइह कोइ फरेइ । परमाणंदु जणंतु फुड सो परमप्पु हवेइ ॥ ३५॥ 36) कम्म-णिबद्ध वि जोइया देहि वसंतु वि जो जि । होइ ण सयलु कया वि फुडु मुणि परमप्पउ सो जि ॥ ३६॥ 37) जो परमत्थे णिकलु वि कम्म-विभिष्णउ जो जि। मूढा सयलु भणंति फुड मुणि परमप्पउ सो जि ॥ ३७॥ 38) गयणि अणंति वि एक उड जेहउ भुयणु विहाइ । मुक्कहँ जसु पए बिवियउ सो परमप्पु अणाइ ॥ ३८ ॥ 39) जोइय-विंदहिणाणमउ जो शाइज्जइ झेउ । मोक्खहँ कारणि अणवरउ सो परमप्पउ देउ ॥ ३९॥ 40) जो जिउ हेउ लहेवि विहि जगु बहु-विहउ जणेइ । लिंगत्तय-परिमंडियउ सो परमप्पु हवेइ ॥४०॥ 41) जसु अभंतरि जगु वसइ जग-अब्भंतरि जो जि । जगि जि वसंतु वि जगु जि ण वि मुणि परमप्पउ सो जि ॥४१॥ 42) देहि वसंतु वि हरि-हर वि जं अन्ज विण मुणति । परम-समाहि-तवेण विणु सो परमप्पु भणति ॥ ४२ ॥ भावाभावहिं संजुवउ भावाभावहिजो जि । देहि जि दिट्ठउ जिणवरहिँ मुणि परमप्पउ सो जि ॥ ४३ ॥
SR No.022373
Book TitleSpiritual Enlightenment
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogindu Deva, A N Upadhye
PublisherRadiant Publishers
Publication Year2000
Total Pages162
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size10 MB
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