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Spiritual Enlightenment 10) चउ गइ-दुक्खाँ तत्चा जो परमप्पउ कोइ ।
चउ-गइ-दुक्ख-विणासयरु कहहु पसाएँ सो वि ॥ १० ॥ 11) पुणु पुणु पणविवि पंच-गुरु भावे चित्ति धरेवि ।
भट्टपहायर णिसुणि तुहुँ अप्पा तिविहु कहेवि (वि?)॥ ११ ॥ 12) अप्पा ति-विहु मुणेवि लहु मूढउ मेल्लहि भाउ ।
मुणि सण्णाणे णाणमउ जो परमप्प-सहाउ ॥ १२ ॥ 13) मूहु वियक्खणु बंभु परु अप्पा ति-विहु हवेइ ।
देहु जि अप्पा जो मुणइ सो जणु मूदु हवेइ ॥ १३ ॥ 14) देह-विभिण्णउ णाणमउ जो परमप्पु णिएइ ।
परम-समाहि-परिट्ठियउ पंडिउ सो जि हवेइ ॥ १४ ॥ 15) अप्पा लद्धउ णाणमउ कम्म-विमुके जेण ।
मेल्लिवि सयलु वि दव्वु परु सो परु मुणहि मणेण ॥ १५ ॥ 16) तिहुयण-वंदिउ सिद्धि-गउ हरि-हर शायहि जो जि ।
लक्खु अलक्खे धरिवि थिरु मुणि परमप्पउ सो जि ॥ १६ ॥ 17) णिचु णिरंजणु णाणमउ परमाणंद-सहाउ ।
जो एहउ सो संतु सिउ तासु मुणिज्जहि भाउ ॥ १७ ॥ 18) जो णिय-भाउ ण परिहरइ जो पर-भाउ ण लेइ ।
जाणइ सयलु वि णिच पर सो सिउ संतु हवेइ ॥ १८ ॥ 19) जासु ण वण्णु ण गंधु रसु जासु ण सद् ण फासु ।
जासु ण जम्मणु मरणु ण वि णाउ णिरंजणु तासु ॥ १९ ॥ 20) जासु ण कोहु ण मोहु मउ जासु ण माय ण माणु ।
जासु ण ठाणु ण झाणु जिय सो जि णिरंजणु जाणु ॥ २० ॥ 21) अत्थि ण पुण्णु ण पाउ जसु अत्थि ण हरिसु विसाउ ।
अत्यि ण एकु वि दोसु जसु सो जि णिरंजणु भाउ ॥२१॥ तियलं ।