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________________ ७२ P++ प्रकीर्णक-पुस्तकमाला ++ ++++ ++ ++ ++ ++ ++ ++20++ ++ S++ ++or++C++R श्रीजिनसेन-स्मरण ++ +****-- ++ ++ ++Geet+ree++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ck++are++GE++C++ee++ee++ जिनसेनमुनेस्तस्य माहात्म्यं केन वयते । शलाकापुरुषाः सर्वे यद्वचोवशवर्तिनः ॥ -पार्श्वनाथचरिते, श्रीवादिराजसूरिः ।। 'सम्पूर्ण शलाकापुरुष जिनके वचनके वशवर्ती हैं जिन्होंने * महापराण लिखकर ६३ शलाकापुरुषोंको ( उनके जीवन वृत्तान्तको ) अपने अधीन किया है-उन श्रीजिनसेनाचार्यका माहा.. म्य कौन वर्णन कर सकता है ? कोई भी नहीं।' याऽमिताऽभ्युदये पार्श्वजिनेन्द्र-गुण-संस्तुतिः । स्वामिनो जिनसेनस्य कीर्ति संकीर्चयत्यसौ ।। --हरिवंशपुराणे, श्रीजिनसेनसूरिः । 'पार्वाभ्युदय' काव्यमें पार्श्वजिनेन्द्रकी जो अनुपम गुणसंस्तुति * है, वह श्रीजिनसेनस्वामीकी कीर्तिका आज भी संकीर्तन-खुलागान कर रही है।' यदि सकलकवीन्द्र-प्रोक्तसूक्त-प्रचारश्रवण-सरसचेतास्तत्वमेव सखे ! स्याः। कविवर-जिनसेनाचार्य-वक्त्रारविन्द प्रणिगदित-पुराणाकर्णनाभ्यर्णकर्णः ॥-अज्ञातकविः ____ हे मित्र । यदि तुम सम्पूर्ण कवि श्रेष्ठोंकी सूक्तियोंके प्रचारको , सुनकर अपना हृदय सरस बनाना चाहते हो तो कविवर जिनमें सेनाचार्यके मुख-कमलसे विनिर्गत (कथित) पुराणको सुननेके लिये कानोंको समीप लाओ-'आदिपुराण' को ध्यानपूर्वक सुनो।' i++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++at++k++ C++ ++ +++ ++ ++ ++ ++CE++ ++ ++:
SR No.022364
Book TitleSatsadhu Smaran Mangal Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year94
Total Pages94
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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