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________________ ++ ++ ++20++20++ ++ ++ ++ ++ ++ प्रकीर्णक-पुस्तकमाला @++ ++8+++S++ +-+9@++++S++++ ++++++ 1 येनाऽसौ निखिल-प्रबोध-जननो जीयाद्गुणाम्भोनिधिः वाकीयोः परमालयोऽत्र सततं माणिक्यनन्दिप्रभुः ।। -प्रमेयकमलमार्तण्डे, श्रीप्रभाचन्द्राचार्यः ___ 'जिन्होंने सकल अर्थसमूहको अपना विषय करनेवाले स्वल्प(अल्पाक्षर), प्रसन्न (प्रसादगुणविशिष्ट) और सुव्यक्त ( स्पष्ट ) पदों । (सूत्रवाक्यों ) के द्वारा संपूर्ण प्रमाण और प्रमाणाभासकासंख्या, फल तथा स्वविषयकी दृष्टिसे कथन किया है, वे सकल प्रबोधके जनक, गुणसमुद्र, वाणी और कीर्तिके परमस्थान है श्रीमाणिक्यनन्दिप्रभु लोकमें सदा जयवन्त होवे-अपने 'परीक्षामुखसूत्र' के द्वारा सदा लोकहृदयमें विराजित रहें।' अकलङ्कवचोऽम्भोधेरुदभ्रे येन धीमता । न्यायविद्याऽमृतं तस्मै नमो माणिक्यनन्दिने। -प्रमेयरत्नमालायां, श्रीलघुअनन्तवीर्यः 'जिन्होंने अकलङ्कदेवके वचन-समुद्रको मथकर उससे न्यायविद्यारूप अमृत निकाला है-अकलङ्कके अगाध न्यायशास्त्रोंपरसे सार खींचकर 'परीक्षामुखसूत्र' की अमर रचना की है-उन बुद्धिमान आचार्य श्रीमाणिक्यनन्दीको नमस्कार हो।' ++ ++ ++20++20++ ++29++ ++ Ka++ ++ ++ ++ ++ ++ २३ ++ ++ ++ -* *: ++ श्रीअनन्तवीर्य-स्मरण वन्दाम्यनन्तवीर्याब्दं यद्वागमृतवृष्टिभिः । जगज्जिघत्सन्निर्वाणः शन्यवादहुताशनः ॥ ____पाश्वनाथचरिते, श्रीवादिराजसूरिः SHO++ ++ ++ ++ ++++ ++ ++ ++ ++k++ ++ ++ ++ ++"
SR No.022364
Book TitleSatsadhu Smaran Mangal Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year94
Total Pages94
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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