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________________ प्रकीर्णक-पुस्तकमाला ++ ++++ ++ a++ ++S++ ++ ++ ++30++04-4g @++ +o n ++ +Ko++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ श्रीसिद्धसेन-स्मरण . -+ODOB जगत्प्रसिद्धबोधस्य वृषभस्येव निस्तुषाः । बोधयन्ति सतां बुद्धिं सिद्धसेनस्य सूक्तयः ।। -हरिवंशपुरासो, श्रीजिनसेनसूरिः 'श्रीसिद्धसेनाचार्यकी निर्मल सूक्तियाँ (सुन्दर उक्तियाँ) जगत्प्रसिद्ध बोध (केवलज्ञान) के धारक भगवान वृषभदेवकी निर्दोष सूक्तियोंकी तरह सत्पुरुषोंकी बुद्धिको बोधित करती हैं-उसे विकसित करती हैं। प्रवादि-करि-यूथाना केशरी नय-केशरः। सिद्धसेनकविर्जीयाद्विकल्प-नखरांकुरः ॥ -आदिपुराणे, श्रीजिनसेनाचार्यः 'जो प्रवादिरूप-हाथियोंके समूहके लिये विकल्परूप-नुकीले नखोंसे युक्त और नयरूप-केशरोंको धारण किये हुए केशरी-सिंह हैं, वे श्रीसिद्धसेन-कवि जयवन्त हों अपने प्रवचनद्वारा मिथ्यावादियोंके मतोंका निरसन करते हुए, सदा ही लोक हृदयों में अपना सिक्का जमाए रक्खें-अपने वचन प्रभावको अङ्कित किये रहे। मदुक्ति-कल्पलतिका सिञ्चन्तः करुणामृतैः । कवयः सिद्धसेनाद्या वर्धयन्तु हृदिस्थिताः ।। -~यशोधरचरिते, श्रीमुनिकल्याणकीर्तिः C++30++ ++a++Geet+OOTra+ra++k++ +++ ++26++6 ++ ++2C++OC++20++20++ ++20++VS++ E++ ++ ++ ++ ++
SR No.022364
Book TitleSatsadhu Smaran Mangal Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year94
Total Pages94
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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