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प्रकीर्णक-पुस्तकमाला R++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ है उत्कृष्ट मंगलके अर्थको लिये हुए है-उसके गम्भीर श्राशयका । प्रतिपादन करनेवाली है-और सिद्धिके स्वात्मोपलब्धिके
सौख्यको सिद्धि करनेवाली है, उस समन्तभद्र-भारतीको समन्तभद्रकी आप्तमीमांसादिरूप-कृति-मालाको मैं अपनी स्तुतिका विषय बनाता हूँ-उसकी भूरि भूरि प्रशंसा करता हूँ।'
इन्द्रभूति-भाषित-प्रमेयजाल-गोचरां वर्द्धमानदेव-बोध-बुद्ध-चिद्विलासिनीम् । योग-सौगतादि-गर्व-पर्वतासनि स्तुवे
क्षीरवार्धि-सन्निभा समन्तभद्रभारतीम् ॥ ५॥ 'इन्द्रभूति ( गौतम गणधर ) का कहा हुआ प्रमेय-समूह जिसका विषय है, जो श्रीवर्द्धमानदेवके बोधसे प्रबुद्ध हुए चैतन्यके विलासको लिये हुए है, योग तथा बौद्धादि-मतावलम्बियोंके गर्व रूपी पर्वतके लिए वज्रके समान है और क्षीरसागरके समान हू उज्ज्वल तथा पवित्र है, उस समन्तभद्रभारतीका मैं कीर्तन करता हूँ-उसकी प्रशंसामें खुला गान करता हूँ।'
मान-नीति-वाक्यसिद्ध-वस्तुधर्म-गोचरां मानित-प्रभाव-सिद्धसिद्धि-सिद्धसाधनीम् ।
घोर-भूरि-दुःख-चार्धि-तारण-क्षमामिमां .... चार-चेतसा स्तुवे समन्तभद्रभारतीम् ॥६॥ 2. 'प्रमाण, नय तथा आगमके द्वारा सिद्ध हुए वस्तु-धर्म जिस+ के विषय हैं-जिसमें प्रमाण, नय तथा आगमके द्वारा वस्तु• धर्मोको सिद्ध किया गया है, मानित (मान्य) प्रभाववाली ॐ++ ++ ++ ++ ++ ++++ ++ ++ ++ ++ ++
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