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प्रकीर्णक-पुस्तकमाला O++ S++ ++ ++ ++ ++++S++26++8++20++38 ८ समन्तभद्र-भारती--
सास्मरीमि तोष्टचीमि ननमीमि भारती तंतनीमि पापठीमि बंभणीमि तेमिताम् । देवराज-नागराज-मर्त्यराजपूजिता
श्रीसमन्तभद्र-बाद-भासुरात्मगोचराम् ॥१॥ 'श्रीसमन्तभद्रके वादसे कथनोपकथनसे-जिसका आत्मविषय देदीप्यमान है और जो देवेन्द्रों, नागेन्द्रों तथा नरेन्द्रोंसे
पूजित है, उस सरसा भारतीका-समन्तभद्रस्वामीकी सरस्वतीहूँ का-मैं बड़े आदरके साथ बार बार स्मरण करता हूँ, स्तवन
करता हूँ, वन्दन करता हूँ, विस्तार करता हूँ, पाठ करता हूँ और । व्याख्यान करता हूँ।'
मातृ-मान-मेय-सिद्धि-वस्तुगोचरां स्तुवे सप्तभङ्ग-सप्तनीति-गम्यतत्त्वगोचराम् । मोक्षमार्ग-तद्विपक्ष-भूरिधर्मगोचरा
माप्ततत्त्वगोचरां समन्तभद्रभारतीम् ॥२॥ 'प्रमाता (ज्ञाता) की सिद्धि, प्रमाण ( सम्यग्ज्ञान ) की सिद्धि है और प्रमेय (ज्ञेय) की सिद्धि ये वस्तुएँ जिसकी विषय हैं, जो सप्त * भङ्ग और सप्तनयसे जानने योग्य तत्त्वोंको अपना विषय किये ॐ हुए है-जिसमें सप्तभंगों तथा सप्तनयोंके द्वारा जीवादि-तत्त्वोंका * परिज्ञान कराया गया है जो मोक्षमार्ग और उसके विपरीत
संसार-मार्ग-सम्बन्धी प्रचुर धर्मोके विवेचनको लिये हुए है और &++ ++ ++ ++OG* &&++ ++ ++ ++ ++ ++ ++
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