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________________ ++ C++ ++ ++ ++ ++8++08++20++20++ ++20+100++ ++ प्रकीर्णक-पुस्तकमाला O++S++Ge++20++@@++ ++++88++20++ ++S+fo@fra स्तुतिविद्यां समाश्रित्य कस्य न क्रमते मतिः । तवृत्तिं येन जाड्ये तु कुरुते वसुनन्द्यपि ॥ -जिनशतकटीकायां, श्रीनरसिंहः 'स्वामी समन्तभद्रकी 'जिनशतक' ( स्तुतिविद्या) नामकी रचना, जो कि योगियोंके लिये भी दुष्कर है, सद्गुणोंकी आधारभूत सुन्दर कमलिनीके समान है-उसके रचना-कौशल, रूपसौन्दर्य, सौरभ-माधुर्य और भाव-वैचित्र्यको देखते तथा अनुभव करते ही बनता है। उस स्तुति-विद्याका भले प्रकार आश्रय पाकर किसकी बुद्धि स्फूर्तिको प्राप्त नहीं होती ? जब कि जडबुद्धि होते हुए भी वसुनन्दी स्तुतिविद्याके समाश्रयणके प्रभावसे - उसकी वृत्ति (टीका ) करने में समर्थ होता है।' यो निःशेष-जिनोक्त-धर्म-विषयः श्रीगौतमाद्यैः कृतः।। सूनार्थैरमलैः स्तवोऽयमसमः स्वल्पैः प्रसन्नैः पदैः। ( तद्व्याख्यानमदो यथावगमतः किञ्चित्कृतं लेशतः ) स्थेयांश्चन्द्रदिवाकरावधि बुधप्रह्लादचेतस्यलम् ॥ -स्वयम्भूस्तोत्रटीकायां, श्रीप्रभाचन्द्रः __ 'श्री समन्तभद्रका 'स्वयम्भूस्तोत्र', जो कि सूक्तरूपमें ( भले । प्रकार) अर्थका प्रतिपादन करनेवाले निर्दोष, स्वल्प (अल्पाक्षर) एवं प्रसन्न (प्रसादगुणविशिष्ट ) पदोंके द्वारा रचा गया है और ___ * यहाँ 'श्रीगौतमाय:' पदका प्रयोग इस आशयको लिये हुए है कि श्रीगौतमस्वामीके स्तोत्रको शुरूमें रखकर दो तीन स्तोत्रों की जो एक साथ टीका की गई है उन सभी स्तोत्रोसे इसका सम्बन्ध है और जिनमें - यह पद्य स्वयम्भूस्तोत्रकी टीकाके अन्तमें दिया है। ++20++ ++ ++ ++ ++++S++ ++ ++ ++ ++ ++26++20++20++ ++ S++ ++ S++ ++20+0@++ ++ S++ ++ ++20 ++ee++8 ++ॐ
SR No.022364
Book TitleSatsadhu Smaran Mangal Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year94
Total Pages94
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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