SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६ a++ ++20++ ++ ++ 8++20++ ++ ++ S++ S++00++ प्रकीर्णक-पुस्तकमाला P++ ++ ++ ++ ++ ++++ ++ ++ ++ ++ ++ नमः समन्तभद्राय महते कविवेधसे । यद्वचो वज्रपातेन निर्भिन्नाः कुमताद्रयः॥ -श्रादिपुराणे, श्रीजिनसेनाचार्यः 'जो कवियोंको नये-नये संदर्भ रचनेवालोंको-उत्पन्न , करनेवाले महान् विधाता ( कवि-ब्रह्मा ) हैं--, जिनकी मौलिक + रचनाओंको देखकर तथा अभ्यास में लाकर बहुतसे लोग नई-नई रचना करनेवाले कवि बन गये तथा बनते जाते हैं और जिनके वचनरूपी वज्रपातसे कुमतरूपी पर्वत खण्ड-खण्ड होगये उनका में कोई विशेष अस्तित्व नहीं रहा-उन स्वामी समन्तभद्रको नमस्कार हो। समन्ताद्भुवने भद्रं विश्वलोकोपकारिणी । यद्वाणी तं प्रवन्दे समन्तभद्रं कवीश्वरम् ॥ --पार्श्वनाथचरिते, भ० सकलकीर्तिः 'जिनकी वाणी-प्रन्थादिरूप-भारती-संसार में सब ओरसे । मंगलमय-कल्याणरूप है और सारी जनताका उपकार करनेवाली है उन कवियोंके ईश्वर श्रीसमन्तभद्रकी मैं सादर वन्दना छ * करता हूँ।' वन्दे समन्तभद्रं तं श्रुतसागरपारगम् । भविष्यसमये योऽत्र तीर्थनाथो भविष्यति ॥ -रामपुराणे, भ० सोमसेनः 'जो श्रुतसागरके पार पहुँच गये हैं-आगमसमुद्रकी कोई 1 बात जिनसे छिपी नहीं रही और जो आगेको यहाँ-इसी , ++ ++ ++ ++ ++ ++++ ++ ++ ++ ++ ++6 ++OO++20++S++00++20++ ++ ++ ++ ++ ++20++ ++ ++ ++ 0+ +20++OO++0 ++
SR No.022364
Book TitleSatsadhu Smaran Mangal Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year94
Total Pages94
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy