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मनुष्य के तीन प्रकार है। (1) कर्म भूमि मनुष्य • भरतादि पंदर कर्मभूमि में उत्पन्न होने वाले ० जहां तलवार आदि का, लेखनकला आदि का तथा खेती आदि का व्यवहार चलता है उसे कर्मभूमि कहते है । ० जहां एसा व्यवहार नहि होता है, उसे अकर्मभूमि कहते है । (2) अकर्म भूमि मनुष्य - हिमवंत हरिवर्ष आदि अकर्मभूमि है। (3) अन्तर्वीप मनुष्य - बैतादय पर्वतकी और शिखरी पर्वतकी चार-चार दाढा, जो लवण समुद्र में फैली हुई है, उसके उपर जो सात सात द्वीप है, उसमें उत्पन्न होने वाले मनुष्य । मनुष्य क्षेत्र पिस्तालीश लाख जोजन प्रमाण है। ० अक लाख जोजन जंबुद्वीप - यह रोटी के आकार का है। ० पूर्वपश्चिम चार लाख जोजन लवण समुद्र ० आठ लाख जोजन धातकीखंड - शेष द्वीप समुद्र चुडी के आकार के
० पूर्वपश्चिम सोल लाख जोजन कालोदधि समुद्र ० पूर्वपश्चिम सोल लाख जोजन पुष्करार्ध द्वीप कुल मिलाकर पिस्तालीश लाख जोजन । ० उससे आगे भी असंख्यात द्वीप समुद्र विद्यमान है, लेकिन वहां पशुपक्षी की उत्पत्ति है, मगर मनुष्य का जन्म मरण वहां नहि है। ० संमुर्छिम पन्चेन्द्रिय - एक मुहुर्त में ज्यादा से ज्यादा चोवीस भव करते है । गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च तथा गर्भज मनुष्य एक ही भव कर सकता
देव के मुख्य चार प्रकार है । (1) भवनपति - अधोलोकमें रत्नप्रभा के थड में अपने भवन में रहते है। उसके असुरकुमारादि दश भेद है । (2) व्यंतर - मूल स्थान तो अधो लोक है, तो भी ज्यादा करके तीर्छा लोक में बसते है।
पदार्थ प्रदीप