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परिशिट
कर्म का विश्लेषण - विभागी करण
1 / 2. मतिज्ञान / श्रुतज्ञान- सामने रहे हुए पदार्थ का साक्षात्कार करना वह मतिज्ञान । बादमें इस पदार्थ को घट कहते है । अथवा घट शब्द सुनते जो घट पदार्थ का ज्ञान एसे ज्ञान को श्रुतज्ञान कहते है । हमको कोई इशारा करे तब यह मुंह में अंगुठा डाल रहा है इत्यादि इशारे का ज्ञान मतिज्ञान होता है, लेकिन उन इशारों के अनुसार जो संकेत ज्ञान होता है - जैसे कि वह पाणी पीने की इच्छा रखता है इत्यादि ज्ञान श्रुतज्ञान है, मतिज्ञान में शब्द व संकेत के स्मरणकी तथा उपयोग की आवश्यकता नहि रहती । मगर श्रुतज्ञान में रहती है ।
3. अवधिज्ञान - मर्यादानुसार बंध आंखो से पदार्थों को साक्षात् देखे जा सकते है, रात में अंधेरा उसे दिखाई देता है । साथ में उनके नीचे रहे हुए पदार्थ की जानकारी भी वह प्राप्त कर सकता है ।
4. मनः पर्यवज्ञान - मनो वर्गणा को साक्षात् करता है जैसेहम खुद की मनोवर्गणा से निर्मित चित्र देखते उसी प्रकार वह देखता, बाद वर्गणा के अनुसार विचार के विषय का अनुमान करता है ।
यहां पहले से हि आकार विशिष्ट का साक्षात्कार होने से दर्शन का भेद नहिं बनता ।
5. केवलज्ञान- तीनो काल के हर पदार्थ के जो पर्याय बनते उन सबका ज्ञान; जैसे यह मिट्टी का पिण्ड पूर्व में किस किस रूप में था और आगे कैसे परिवर्तन को प्राप्त करेगा उन सब बातो का ज्ञान ।
इन को रोकने वाले कर्म को मतिज्ञानावरणीय इत्यादि कहते है | निद्रा - हम जो नींद लेते है, उसमें यह कर्म निमित्त बनता है, क्षयोपशम से प्राप्त थोडा बहोत ज्ञान दर्शन वह सब निद्रा वश रूक जाता है ।
पदार्थ प्रदीप
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