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________________ २२ ___ अयोगव्यवच्छेदः अंगीकार करे विना, (मोक्ष्यमाणा अपि) चाहो वे अपने आपकों मोक्ष होना मानभी रहे हैं, तोभी, (मोक्षम्) मोक्षकों (न) नही (यांति) प्राप्त होते हैं, क्योंकि, सम्यग् दर्शन ज्ञान चारित्रके अभावसें किसीकोंभी मोक्ष नहीं है, और सम्यग् दर्शन ज्ञान चारित्रकी प्राप्ति, तेरे मार्ग विना कदापि नही होवे है ।। १४ ॥ अथाग्रे स्तुतिकार, परवादीयोंके उपदेश भगवत्के मार्गकों किंचिन्मात्रभी कोप वा आक्रोश नही कर सक्ते हैं, सो दिखाते हैं। अनाप्तजाड्यादिविनिर्मितित्व संभावनासंभविविप्रलम्भाः । परोपदेशाः परमाप्तक्लृप्तपथोपदेशे किमु संरभन्ते ॥ १५ ॥ व्याख्या- हे जिनेंद्र ! (परोपदेशाः) जे परमतवादीयोंके उपदेश है, वे उपदेश (परमाप्तक्लृप्तपथोपदेशे) तेरे परमाप्त के रचे कथनकरे उपदेशमें (किमु) क्या, किंचिन्मात्रभी (संरंभन्ते) करते हैं? अर्थात् कोप वा आक्रोश करते हैं ? किंचिन्मात्रभी नही क्या? खद्योत प्रकाश करते हुए सूर्य मंडलकों कोप वा आक्रोश कर सक्ता है? कदापि नही। ऐसें तेरे शासनकोंभी परोपदेश संरंभ नही कर सक्ते हैं, क्योंकि, परवादीयोंके मतमें जो सूक्ति संपत् है, सो तेरेही पूर्व रूपीये समुद्रके बिंदु गए हुए है, तिनके बिना जो परवादीयोंने स्वकपोलकल्पनासें मिथ्या जाल खडा करा है, सो सर्व युक्ति प्रमाणसें बाधित है, इस हेतुसें परवादीयों के उपदेश तेरे मार्गमें कुछभी कोप वा आक्रोश नही कर सक्ते हैं। कैसें है वे, वे. परवादीयोंके उपदेश ? (अनाप्तजाड्यादिविनिर्मितित्वसंभावनासंभविविप्रलंभाः) अनाप्तोंकी बुद्धिकी जो जाड्यतादि, तिससें निर्मितित्व संभावना, अर्थात् अनाप्तोंकी मंदबुद्धिकी
SR No.022359
Book TitleAyogvyavacched Dwatrinshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaypradyumnasuri
PublisherShrutgyan Prasarak Sabha
Publication Year
Total Pages50
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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