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________________ ११ तत्त्वनिर्णय प्रासादे और पुरुष तिसका फल भोक्ता है, पुरुष निर्गुण है, अकर्ता है, अक्रिय है, परंतु भोक्ता है, इत्यादि सर्व कथन तुंरंगशृंगकीतरें असद्रूप करा है। _ नैयायिक वैशेषिक यह दोनों ईश्वर को सृष्टिका कर्ता मानते हैं, ईश्वर नित्य बुद्धिवाला है, सर्व व्यापक और नित्य है, ईश्वरही सर्व जीवों का फलप्रदाता है, आत्मा अनंत है परंतु सर्वही आत्मा सर्वव्यापक है, मोक्षावस्थामें ज्ञान के साथ समवायसंबंध के तूटनेसें आत्मा चैतन्य नही रहता है और तिसकों स्वपर का भान नही होता है, इत्यादि सर्व कथन तुरंगशृंग उपपादनवत् है। पूर्व मीमांसावाले कहेत हैं कि ईश्वर सर्वज्ञ नही है, मोक्ष नही है, वेद अपौरुषेय और नित्य है, वेद का कोई कर्ता नही है, इत्यादि सर्व कथन तुरंगशृंग उपपादनवत् असत् है। ___बौद्ध मतके मूल चार संप्रदाय है,-योगाचार (१), माध्यमिक (२), वैभाषिक (३), सौतांत्रिक (४); इनमें योगाचार मतवाले विज्ञानद्वैतवादी हैं, आत्माको नहीं मानते हैं, एक विज्ञान क्षणकोही सर्व कुछ मानते हैं; कितनेक विज्ञान क्षणोके संतान के नाश कोही निर्वाण मानते है; कितनेक शून्यवादी सर्व शून्यही सिद्ध करते हैं, इत्यादि सर्व कथन तुरंगशृंग उपपादनवत् है। इन पूर्वोक्त, सर्ववादियोंका कथन जिस रीतिसें तुरंगशृंग उपपादनवत् असत् है, सो कथन अन्य योग व्यवच्छेदक द्वात्रिंशिकावृत्ति, (स्याद्वाद मंजरी,) षट्दर्शनसमुच्चय बृहद्वृत्ति, प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकर सूत्रकी लघु वृत्ति (रत्नाकरावतारिका,) बृहद्वृत्ति (स्याद्वाद रत्नाकर,) धर्म संग्रहणी, अनेकांत जयपताका, शब्दांभोनिधि, गंधहस्ति, महाभाष्य, (विशेषावश्यक,) वादमहार्णव, (सम्मतितर्क,) इत्यादि शास्त्रोंसें जानना। .......
SR No.022359
Book TitleAyogvyavacched Dwatrinshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaypradyumnasuri
PublisherShrutgyan Prasarak Sabha
Publication Year
Total Pages50
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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