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________________ प्र०सा० लोकाभिमततीर्थदेवेभ्यः स्वाहा ८ ॥ इति विलिख्य निर्मायामात्रया परिक्षिप्य कोंकारेण निरुध्य बहिः भाल्टी 21 मुखमूलवपोपेतपत्रपद्मांकितः सितः । पववर्णाकदिक्कोणः कलशस्तोयमंडलम्" ।। इत्येवं लक्षणं । ॥३२॥ IN अ०२ वरुणमंडलं चालिख्य परब्रह्मार्चनपुरस्सरं पत्रेषु जलदेवताः स्वस्वमंत्रपूतजलादिभिरुपचरेत् । तद्यथा । तब्रह्मचिन्मयसुधारसपूरभोक्तृ वाक्यामृताछुतजगद्विधिपूर्वमेतत् । - अगंधतंदुललतांतचरुपदीपधूपप्रसूनकुसुसजलिभियजेस्मिन् ॥ ४१ ॥ I ॐ ह्रीं अर्ह श्रीपरमब्रह्मणेऽनंतानंतज्ञानशक्तये इदं जलं गंधमक्षतान् पुष्पाणि चरुं दीपं धूपं || फलं पुष्पांजलिं च निर्वपामीति स्वाहा । लिखे । उसके बाहर जलमंडल लिखकर श्री परब्रह्म अर्हतका पूजन करे, फिर आठ पत्रोंपर आठ प्रकारके जलदेवताओंका पूजन अपने २ मंत्रसे मंत्रित पवित्र जलादि द्रव्योंसे करे ॥ जलमंडलकी विधि इसतरह है कि पहले आठ पत्रका कमल बनावे उसके आगे कलशका ४ आकार लिखे उसके मुखभागपर कमल खींचे उसके मध्यभागमें पत्रके ऊपर वकार लिखे उसके वाद कलशके नीचे भागपर कमल बनावे उसके मध्यपत्रमें पकार लिखे । कलशका वर्ण सफेद है, उस कलशकी चारों दिशाओं में पकार लिखे, बाहरके भागमें चारकोनोंमें वकार लिखे-इस प्रकार वरुणमंडल (जलमंडल) जानना। अब अष्टदल कमलपत्रकी पूजाविधि कहते हैं-" तद्ब्रह्म " इत्यादि श्लोक पढकर “ओं ह्रीं" इत्यादिसे ॥३२॥ परम ब्रह्म अर्हत देवकी जलादि अष्ट द्रव्यसे पूजा करे॥४१॥"पद्मादि" इत्यादि श्लोक पढकर
SR No.022357
Book TitlePratishtha Saroddhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Manharlal Pandit
PublisherJain Granth Uddharak Karyalay
Publication Year1918
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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