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________________ प्र०सा० भान्टी० ॥१९॥ अ०२ ब्यूने विंबमितोंकयोजनशते क्रोशार्धमात्रं क्षितेबर्बाह्यं द्विद्विसहस्रकेसरिमुखैभिक्षुप्रियः शूलभूत् । पल्यार्धायुरपाक्कुजात्र खदिराभृष्टैर्गुडाजोत्कटैः संतुष्टो यवसक्तुभिघृतयुतदुर्गादिभिधूप्यसे ॥३०॥ हे अंगारक आगच्छ अंगारकाय स्वाहा । विंचं खं शशिनोष्टयोजनमतीत्योर्ध्वव्रजजवत् क्रोशार्धप्रमितं कुजस्थितिरितो वर्णीष्टिमुत्पुस्तकम् । हुई । २९ ॥ “ न्यूने” इत्यादि श्लोक पढ़कर “हे अंगारक" इत्यादिसे आह्वाननादि तीन || करे फिर ओं ह्रींमें “ अंगारकाय” लगाकर जलादि आठ द्रव्य चढावे । इसमें खैरकी लकड़ीसे भुने हुए गुड घीसे मिले हुए जौके सत्तुओंसे तथा गूगुलं घी राल इलाइची अगुरु आदिकी धूपसे दक्षिण दिशामें आहूतियां दे। इससे मंगलदेव प्रसन्न होता है ॥ ३०॥ यह मंगलकी पूजा हुई । “ विंबं" इत्यादि श्लोक पढकर “हे बुध" इत्यादिसे आह्वाननादि । करे फिर ओह्रींमें “बुधाय" लगाकर जलादि अष्ट द्रव्य चढावे। इसकी पूजामें ब्रह्मचारीको | अष्ट सिद्धि मिलती है। अपामार्गकी लकडीसे भातको बनाकर उसमें दूध डाले ऐसा नैवेद्य बनावे तथा राल घीकी धूपसे पश्चिमदिशामें आहूतियां दे यह बुधकी पूजा हुई ॥२९॥
SR No.022357
Book TitlePratishtha Saroddhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Manharlal Pandit
PublisherJain Granth Uddharak Karyalay
Publication Year1918
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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