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________________ до ато . अ० सम्रन्छन्डन्न्डन्सन्स ऊर्ध्वं विस्तीर्णमंशान् वसुजलधिमितान् योजनस्यैकषष्ठान् भाधी० मुक्त्वाष्टौ तच्छतानि क्षितिमनिलधृतं खेसृहस्तैश्चतुर्भिः । पूर्वाद्याशानुपूर्व्या पृथगिभभिदिमोक्षार्वदेवैर्विमानं स्वारूढो नीयमानं दशशतशरदन्वीतपल्योत्तमायुः ॥ २७ ॥ त्वं तोष्टा तापसेष्टया कमलकरहरिद्वाहनेता ग्रहाणां नैवेद्यैः सानुगोर्केधनगृतपरमानोधसर्पिगुंडायैः । गंधैः पुष्पैः फलैश्चोत्तमघुमृणजपापकनारंगपूर्वै स्ताक्षश्चाक्षताद्यैरिह हरिहरिति प्रीणितः प्रीणयास्मान् ॥ २८॥ ये चार उपचार कहे गये हैं विसर्जन पूजाके वाद होता है। इस तरह पांच उपचार पूजाके सब जगह जानना चाहिये ॥ २६ ॥ इस प्रकार हर एककी पूजाके आरंभमें आह्वा-12 ननादि करनेके समय पुष्पांजलिका क्षेपण करना चाहिये । अब सूर्यादिकी पूजाविधि कहते हैं-पहले “ ऊर्व " इत्यादि और “ त्वं तोष्टा" इत्यादि-ये दो श्लोक पढकर “ हे ||आदित्य" कहकर आह्वानन स्थापन सन्निधीकरण करे, उसके वाद “ओं आदित्याय "| इत्यादि बोलकर जलादि आठ द्रव्य चढावे । आकके ईधनसे पकाई हुई खीर ताजा गौका || ॥२८॥ माघी गुड लाडू वगैरः नैवेद्यसे पूजै तथा अग्निमें आहूतियां दे जिसके लिये यह पूजाकर्म
SR No.022357
Book TitlePratishtha Saroddhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Manharlal Pandit
PublisherJain Granth Uddharak Karyalay
Publication Year1918
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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