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________________ प्र० सा० ॥ २२ ॥ X22 द्वितीयोऽध्यायः ॥ २ ॥ अथातस्तीर्थोदकादानविधानमनुवर्णयिष्यामः - दत्वा पद्माकराया वास्तुदेवाय चावनीम् । संमा वायुभिर्मेधैः प्रोक्ष्य पूत्वाग्निनोरगान् ॥ १ ॥ इष्टोद्धतार्चिते साष्टदलाब्जे मंडलेथवा । सैकाशीतिपदे न्यस्य शांत्यै संस्नापयेऽर्हतः।। २ ।। दूसरा अध्याय ॥ २॥ इस सूत्रस्थापनके वाद जलयात्राविधि अनुवादरूपसे कहते हैं; --सरोवरको और वास्तुदेवको अर्घ देकर वायुकुमार देवोंके आह्वाननसे भूमिको साफकर मेघकुमार देवोंके आह्वाननसे छिड़ककर अभिकुमार देवोंके आह्वाननसे अग्नि जलाकर साठ हजार नागोंको पूजकर अष्टकमल पत्रवाले मांडलेमें लघुशांतिकर्म करके तथा इक्यासी कोठोंवाले मांडलेमें वृहत्शांतिविधान करके मैं अर्हतका अभिषेक करता हूं ऐसा कहता हुआ अर्हतका अभिषेक करे ॥ १ ॥ २ ॥ फिर शांतिकर्म आरंभ करनेके लिये सरोवर के किनारे पुष्पांजलि भा०टी० अ० २ ॥ २२ ॥
SR No.022357
Book TitlePratishtha Saroddhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Manharlal Pandit
PublisherJain Granth Uddharak Karyalay
Publication Year1918
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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