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________________ . प्र० साल अथेद्रो दिव्यवस्त्रसग्भूषागोशीर्षसंस्कृतः । प्रतींद्रदातृयुग्धुर्यं गजं वाश्वमधिष्ठितः॥ १५७ ॥मा०टी० सत्पल्लवच्छन्नमुखान दूर्वादध्यक्षतांचितान्। फलगर्भानवान् कुंभान दृढान कंठलुठत्स्रजः१५८॥ अ०१ बिभ्रतीभिः सुवेशाभिः सहर्षाभिः पुरंधिभिः । सर्वसंघेन च वृत्तश्छत्रतौर्यत्रिकध्वजैः१५९ है विश्वं विस्मापयन् शांत्यै सर्वतो यवसर्षपान् । मंत्राभ्यस्तान किरन् गत्वा प्रतिष्ठामाग्दिने सरः ।। तस्मै दत्तार्घमाधाय तत्तीरे वास्तुवद्विधिम्। आह्वाननादिविधिना प्रसाद्य जलदेवताम्॥१६१॥ पूरयित्वा जलैरास्यस्थापितश्यादिदेवतान् । ताभिरेव पुरंध्रीभिर्महाभूत्या तथैव तान १६२॥ | कुंभानानाय्य संस्थाप्य चैत्यगेहे सुरक्षितान् । तथैवोत्तरकृत्याय दातृमंदिरमाश्रयेत्॥१६३॥ इति जलयात्राव्यावर्णनम् । चारों तरफ वखेर रहा हो ॥१५७। १५८॥१५९ । १६० ॥ उस सरोवरको अर्घ देकर उसके किनारे पहलेकी तरह आह्वानादि विधिसे जलदेवताको प्रसन्न करे॥१६१॥ उसके वाद उन घडोंको जलसे भरकर उनके मुखमें श्रीआदि देवियोंका स्थापनकर उन्हीं कुलीन स्त्रियोंके ऊपर | रक्खे और उन घड़ोंको लाकर जिनमंदिरमें अच्छी तरह स्थापन करे। उसके बाद आगेकी | क्रिया करनेके लिये यजमानके घरपर आवे ॥ १६२ । १६३॥ इस प्रकार जलयात्राविधि पूर्ण । हुई । उसके वाद यजमान और वे इंद्र स्नान तथा पूजा करके साधर्मी भाइयोंको स्वादिष्ट १ओं ढूंडूं फट् किरिटि घातय २ परविन्नान् स्फोटय २ सहस्रखंडान् कुरु २ परमुद्राणिछद २ परमंत्रान् भिंद |२क्षः क्षःहूं फट् स्वाहा । इति मंत्रः । लन्कन्छन्
SR No.022357
Book TitlePratishtha Saroddhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Manharlal Pandit
PublisherJain Granth Uddharak Karyalay
Publication Year1918
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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