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ओं “ सत्तक्खरसक्कार अरहताणं णमोत्ति भावेण । जो कुणइ अणण्णमणो सो गच्छइ ।। उत्तमं ठाणं " ॥ कंकणमोक्षणं । ॐ "केवलणाणदिवायरकिरणकलावप्पणासियण्णाणो । णव केव- भाण्टी० ललझुग्गमसुजणियपरमप्पववएसो" असहायणाणदंसणसहिओ इदि केवली हु जोएण। जुत्तोत्ति सजोगि-2
अ०४ जिणो अणाइणिहणारिसे उत्तो" । इत्येषोऽर्हत्साक्षादत्रावतीर्णो विश्वं पात्विति स्वाहा। प्रतिमोपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत् । अर्हद्देवसाक्षात्करणविधानम् । ओं "खवियघणघाइकम्मा चउतीसातिसयपंचकल्लाणा । अटवरपाडिहेरा अरहंता मंगलं मज्झ" भूयासुरिति स्वाहा ॥ परमोत्सवेन महाघमवतारयेत् ।। सिद्धश्रुतचरित्रर्षिशांतिभक्तिभिरन्विताः। केवलज्ञानकल्याणक्रियां कुर्वतु याजकाः ॥२२३|| । इति केवलज्ञानकल्याणकस्थापनविधानम् । न्यस्यनिर्वाणकल्याणं सूत्रोक्तविधिना ततः। सिद्धश्रुतचरित्रर्षिशिवशांतीन स्तुवंतु ते॥२२४॥
इति निर्वाणकल्याणस्थापनम् । करे ॥ २२२॥ यह अर्हत प्रभुका साक्षात्करण हुआ।" ओं" इत्यादि स्वाहातक बोलकर बहुत उच्छवके साथ महार्घ चढावे। इसप्रकार प्रतिष्ठा करनेवाले सिद्ध श्रुत चारित्र ऋषि शांति भक्तियों सहित केवलज्ञानकल्याणकी क्रिया करें।। २२३ ॥ इसतरह केवलज्ञानकल्याणकी स्थापना विधि हुई। उसके बाद वे इंद्र शास्त्रकथित विधिसे निर्वाण कल्याणका स्थापन करके सिद्ध श्रुत चारित्र ऋषि शिव शांति स्तुतिका पाठ करें॥२२४॥ जिसतरह ११६॥