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अब सुन चार ध्यान हित-कारी
अब सुन रौद्र-ध्यान की सैली
अब सुन शुक्ल - ध्यान की बातें
आप संभार आप सों जोरै
आरत-ध्यान चिंतवन कहिये
आरत- रौद्र विचारतें
आर्त-रौद्र कुध्यान बखाने
उपशम क्षपक श्रेणि आरोहै
को खोज करत गुण लहिये
चरण चतुर्थ साध शिव पावै
चेतन जड अनादि संजोगी
चेतन निज स्वभाव महं आवै
चेतहु पाणी सुन गुरुवाणी जिनवर आयु निकट जब आवै
ज्ञान स्वरूप अनन्त गुण
ज्ञानी ज्ञान भेद परकाशै
तनकी व्यथा मगन मन झूरै
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दोहासूची
तब मुनि लोकालोक - विकासी
दानशील तप भावना
पूरब-कर्म उदय पहिचानै
प्रथम हिं दानशील तप भावै
फरस बरण रस गंध सुभाखा फिरकै देह-बुद्धि जब होई
बिकसित झूट - वचन मुख - भाखै
भानु उदय दिन के समय
भिन्न भिन्न जड चेतन जोवै
मन-वच-काय कष्ट जब सहिये
मन-वच-काय शकति कछु दीजे
यह परमारथ पंथ गुन
यह रूपस्थ-पदस्थ - विधि
रहै मगन सो मूढ कहावै
विमल - रूप चेतन अभ्यासै
शक्ति अनंत तहां परकाशै
शुक्ल-ध्यान औषधि लगे
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