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________________ ६४ नवतत्त्वसंग्रहः स्थिति-भाषा की स्थिति जघन्य एक समय, उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त । ११. अंतर - भाषा का अंतर जघन्य अंतर्मुहूर्त, उत्कृष्ट वनस्पति काल । १२. ग्रहण - भाषा के पुद्गल कायायोग सें ग्रहण करे । १३. व्युत्सर्ग-भाषा की वर्गणाकूं वचनयोग से तजे - छोडे । १४. निरंतर - भाषा के पुद्गल प्रथम समये लेवे, दुजे समय नवे ग्रहण करे अने पीछले छोडे । एवं प्रकारे तीजे ४/५/६ यावत् अंतर्मुहूर्त ताई लेवे पीछे के छोडे, अंतसमये ग्रहण न करे, पीछले छोडे । इहां पहले समय तो लेवे ही अने चरम समय में छोडे अने मध्य के असंख्य समया मे ले (वे) वी अने छोडे वी। ए दो बातें एकेक समय में होवे । (२३) शरीर पांच का यंत्र श्रीप्रज्ञापना पद २१ मेथी । औदारिक १ वैक्रिय २ मनुष्य १ ४ गतिना तिर्यंच २ ६ षट् नाम १ स्वामी २ संस्थान ३ प्रमाण ४ पुद्गल चयना ५ o अल्प बहु त्व ७ o जघन्य | अंगुल के असं - ख्य भाग १००० योजन उत्कृष्ट परस्पर औदारिक पांच वैक्रिय १. बधाथी । प्रदेशार्थ ३|४|५|६ दिशा से शरीर का आहारक संयोग तैजस द्वार ६ कार्मण द्रव्यार्थे ३ असंख्येय गुणा ३ असंख्येय गुणा O भजना है नियमा है भजना है २ मूले सम १, हुंड २ उत्तर नाना १,००,००० योजन ६ षट् दिशा से भजना है अंगुल के असं - देशोन १ अंगुल के असं - अंगुलके अख्य भाग ख्य भाग संख्यमे भाग हस्त सर्व लोक प्रमाण ३|४|५|६ दिशा से नियमा है नियमा है नियम है o o भजना है आहरक ३ चौदपूर्वधर मनुष्य समचतुरस्र २ असंख्येय गुणा २ असंख्येय गुणा १ हस्त प्रमाण ६ षट् दिशा से भजना है 0 0 भजना है १ सर्वेभ्यः स्तोक तैजस ४ ४ गतिना १ सर्वेभ्यः स्तोक कार्मण ५ ४ गतिना जीव नाना संस्थान नाना संस्थान १४ रज्जु प्रमाण ३|४|५|६ दिशा से नियमा है नियमा है नियमा है o ४ अनंत गुणा ४ अनंत गुणा ४ अनंता गुणा ५ अनंता गुणा
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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