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ईशान
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नवतत्त्वसंग्रहः मरणांत | नारकी भवन० । ३-८ । ९-१२ ९ ग्रैवे- स्था | विकलेंद्री | म समुद्धात
व्यंतर | देवलोक | देवलोक | यक तेजस जोतिषी
तिर्यंच अवसौधर्म
अनुत्तर || पंचेन्द्री गाहना
१००० | अंगुल के |अंगुल असं- अंगुल असं-| विद्याधर अंगुल के एवम् एवम् योजन असंख्या- | ख्यात में स्त्री ख्यात में भाग श्रेणि | असंख्यासाधिक | तमो भाग | से भोग भाग | स्त्री से भोग पाताल- | स्व आभरण करी मरी | करी कलश | आदि | तिहां उपजे | तिहां योनि में की भीति | अपेक्षा (से)| अन्य वीर्य में | पहिला वीर्य आश्री
है तिहां उपजे उत्कृष्ट | सातमी | त्रीजी नर- | पाताल- | अधो- | अधोनरक | कका चरम | कलश के ग्राम में | ग्राममें | रज्जु उपर ले २
प्रमाण
घ
तमे
अंत
भागे
रज्जु
पृथ्वी
तिरछा स्वयंभूरमण| स्वयंभूरमण | स्वयंभूरमण | मनुष्य क्षेत्र | मनुष्य | समुद्र | समुद्र की समुद्र
क्षेत्र रज्जु | वे(द)दिकांत ऊर्ध्व | पंडग वन ईषत् | अच्युत | अच्युत | अपना | १४ ऊंचा | वापी में प्राग्भार देवलोक विमान | विमान |
बारमा देव० (१६) श्रीपन्नवणा पद ३६मेथी समुद्धातयंत्रम् ७ समुद्धात | 0 | वेदनी | कषाय | मरणां- | वैक्रिय | तैजस | आहारक | केवल | असम
वहता स्वामी 10 ४ गतिना | ४ गतिना | ४ गतिना | ४ गतिना |३ नरक | १ मनुष्य | १ मुनष्य | ४ गतिना
विना
जीव भंते० ! जह० अंगु० असं०, उक्को० अधे जाव महापातालाणं दोच्चे तिभागे, तिरियं जाव सयंभुरमणे समुद्दे, उड़ जाव अच्चओ कप्पो, एवं जाव सहस्सारदेवस्स अच्चओ कप्पो । आणयदेवस्स णं भंते ! जह० अंग० असं०, उक्को जाव अधोलोइयगामा, तिरियं जाव मणूसखेत्ते, उढे जाव अच्चुओ कप्पो, एवं जाव आरणदेवस्स अच्चुअदेवस्स एवं चेव, णवरं उड्ढे जाव सयाई विमाणाति । गेविज्जगदेवस्स णं भंते !० जह० विज्जाहरसेढीतो, उक्को० जाव अहोलोइयगामा, तिरियं जाव मणूसखेत्ते, उड्ढे जाव सगाति विमाणाति, अणुत्तरोववाइयस्स वि एवं चेव" । (प्रज्ञा० सू० २७५)
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