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नवतत्त्वसंग्रहः आतम अनंत रूप सत्ता भूप रोग धूप वडे (परे ?) जग अंध कूप भरम भरतु हे सत्ताको सरूप भुल करनहींडोरे जुल कुमताके वश जीआ नाटक करतु है
१४ रिधी सिद्धि ऐसे जरी खोदके पतार धरी करथी न दान करी हरि हर लहेगो रसना रसक छोर वसन ज(अ)सन दोर अंतकाल छोर कोर ताप दिल दहेगो हिंसा कर मृषा धर छोर घोर काम पर छोर जोर कर पाप तेह साथ रहेगो जौलो मित आत(दे) पान तौलो कर कर दान वसेहुं मसान फेर कोन देद(दे) करेगो १५ । रीत विपरीत करी जरता सरूप धरी करतो बुराइ लाइ ठाने मद मानकुं द्युत धुत (झूठ) मंस खात सुरापान जीवघात चोरी गोरी परजोरी वेश्यागीत गानकुं सत कर तुत उत जाने न धरमसूत माने न सरम भूत छोर अभेदानकुं मुत ने पुरीस खात गरभ परत जात नरक निगोद वसे तजके जहानकुं लिखन पठन दीन शीखत अनेक गिन क(को)उ नहि तात(तत्त)चिन छीनकमें छिजे है उत्तम उतंग संग छोरके विविध रंग रंभा दंभा भोग लाग निश दिस भींजे है काल तो अनंत बली सुर वीर धीर दली ऐसे भी चलत ज्युं सींचान चिट लीजे है छोरके धरम द्वार आतम विचार डार छारनमे भइ छार फेर कहा किजे है लीलाधारी नरनारी खेभंग जोगकुं वारि ज्ञानकी लगन हारि करे राग ठमको योवन पतंग रंग छीनकम होत भंग सजन सनेहि संग विजकेसा जमको पापको उपाय पाय अध पुर सुर थाय परपरा तेहे घाय चेरो भये जमको अरे मूढ चेतन अचेतन तुं कहा भयो आतम सुधार तुं भरोसो कहा दमको ? एक नेक रीत कर तोष धर दोष हर कुफर गुमर हर कर संग ज्ञानीको खंति निरलोभ भज सरल कोमल रज सत धार भा(मा)र तज तज संग मानीको तप त्याग दान जाग शील मित पीत लाग आतम सोहाग भाग माग सुख दानीको देह स्नेह रूप एत(ते) सदा मीत थिर नही अंत हि विलाय जैसे बुदबुद पानीको ऐरावत नाथ इंद वदन अनुप चंद रंभा आद नारद तु(धु ?)जे द्रग जोयके खट षंड राजमान तेज भरे वर भान भामनिके रूप रंग दीसे सेज सोयके हलधर गदाधर धराधर नरवर खानपान गानतान लाग पाप वोयके
आतम उधार तज बीनक इशक भज अंत वेर हाय टेर गये सब रोयके ५ओडक वरस शत आयु मान मान सत सोवत विहात आघ लेतहे बिभावरी तत वाल खेल ख्याल अरध हरत प्रौढ आध व्याध रोग सोग सेव कांता भावरी उदग तरंग रंग योवन अनंग संग सुखकी लगन लगे भई मित(मति) बावरी मोह कोह दोह लोह जटक पटक खोह आतम अजान मान फेर कहां दावरी ?
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१. आनंद । २. धर्मसूत्र । ३. तत्त्वज्ञाता । ४. आवाज । ५. आखर ।