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________________ ४६० (१६९ ) अथ ७३ अध्रुवबंधनो उत्कृष्ट जघन्य निरंतर बन्धयन्त्र प्रकृतिनामानि सुरद्विक २, वैक्रियद्विक २ निरंतर बन्ध तीन पल्योपम तिर्यंच गति १, तिर्यंचानुपूर्वी १, नीच गोत्र १ नवतत्त्वसंग्रहः आयु ४ औदारिक शरीर १ सातावेदनीय १ पराघात १, उच्छ्वास १, पंचेंद्री १, त्रसचतुष्क ४ शुभ विहायगति १, पुरुषवेद १, सुभगत्रिक ३, उंच गोत्र १, समचुतरस्त्र संस्थान १, शुविहायोगति १, जाति ४, अशुभ संहनन ५ अशुभ संस्थान ५, आहारकद्विक २, नरकगति १, नरकानुपूर्वी १, उद्योत १, आतप १, थिर १ शुभ १, यश १, स्थावरदशक १०, नपुंसकवेद १, स्त्रीवेद १, हास्य १, रति १, अरति १, शोक १, असातावेदनीय १ मनुष्यद्विक २, जिननाम १, वज्रऋषभनाराच १, औदारिक अंगोपांग १ (१७० ) अथ उत्कृष्ट रसबन्धस्वामियन्त्रं शतक कर्मग्रन्थात् प्रकृति एकेंद्री १, थावर १, आतप १ विकलत्रिक ३, सूक्ष्मत्रिक ३, तिर्यंच - आयु १, मनुष्य - आयु १, नरकत्रिक ३ तिर्यंच गति १, तिर्यंचानुपूर्वी १, छेवट्ठा १, वैक्रियद्विक २, देवगति १, देवानुपूर्वी १, आहारकद्विक २, शुभ विहायोगति १ शुभ वर्णचतुष्क ४, तैजस १, कार्मण १, अगुरुलघु १, निर्माण १, जिननाम १, सातावेदनीय १, समचतुरस्र १, पराघात १, त्रसदशक १० पंचेंद्री १, उच्छ्वास १, उच्चगोत्र १ एवं सर्व ३२ उद्योत मनुष्यगति १, मनुष्यानुपूर्वी १, औदारिकद्विक २ वज्रऋषभसंहनन १ वायु १ शेष ६८ प्रकृति समयथी लइ असंख्य काल १ अंतर्मुहूर्त असंख्य पुद्गलपरावर्त देश ऊन पूर्व कोड १८५ सागरोपम १३२ सागरोपम उत्कृष्ट समयी लेइ अंतर्मुहूर्त ३३ सागर, जघन्य अंतर्मुहूर्त रसबन्धस्वामी मिथ्यात्वी ईशानांत देवता बांधे मिथ्यात्वीतिर्यंच, मनुष्य देवता, नारकी अपुर्वकरण गुणस्थानमे सूक्ष्मसंपरायगुण. क्षपकश्रेणिमे यथासंभव बंध करे सातमी नरकका नारकी सम्यक्त्वके सन्मुख सम्यग्दृष्टि देवता अप्रमत्तयति ४ गतिना मिथ्यात्वी
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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