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________________ ३९४ १ समुच्चय वैक्रिय वै रत्नप्रभा वैक्रिय (१४०) वैक्रिय शरीरके सर्वबंध, देशबंधनी स्थिति सर्वबंधनी स्थिति ज० १ समय, उ० २ समय शेष ६ नरक, भवनपति १०, व्यंतर, जोतिषी, वैमानिक तिर्यंच पंचेन्द्रिय, मनुष्य २ ओघवैक्रिय वायु वैक्रिय पंचेन्द्रिय तिर्यंच, मनुष्य (१४२ ) जीव हे भगव(न्) ३ वायु, पंचेन्द्रिय तिर्यंच, मनुष्य रत्नप्रभा पुनरपि रत्नप्रभा शेष ६ नरक, भवनपति आदि यावत् सहस्रार आनतसे ग्रैवेयक पर्यंत ज० १ समय ज० १ समय ४ अनुत्तर वैमानिक ज० १ समय ज० १ समय (१४१ ) वैक्रियशरीरप्रयोगबन्धान्तरम् सर्वबन्धान्तरम् ज० १ समय, उ० वनस्तपतिकाल ज० अंतर्मुहूर्त, उ० पल्योपमनो असंख्यातमो भाग सर्वबन्धान्तरम् ज० अंतर्मुहूर्त, उ० वनस्पतिकाल वायु, मनुष्य, तिर्यंच पंचेन्द्रिय वैक्रिययन्त्रम् ( १४३ ) ज० अंतर्मुहूर्त अधिक १०,००० वर्ष, उ० वनस्पतिकाल देशबंधनी स्थिति ज० १ समय, उ० १ समय ऊणा ३३ सागर ज० १ समय, उ० १ अंतर्मुहूर्त ज० ३ समय उणा १०,००० वर्ष, उ० १ समय ऊणा १ सागर देशबन्धान्तरम् ज० १ समय, उ० वनस्पतिकाल ज० अंतर्मुहूर्त, उ० पल्योपमनो असंख्यातमो भाग ज० अंतर्मुहूर्त, उ० पृथक् पूर्व कोड ज० अंतर्मुहूर्त, उ० पृथक् पूर्व कोड वायुकाय हुइने नोवायुकाय हुया फेर वायुकाय हुइ तो अंतरयन्त्रम् ज० अंतर्मुहूर्त अधिक जिसकी जितनी जघन्य स्थिति, उ० नवतत्त्वसंग्रहः वनस्पतिकाल ज० पृथक् वर्ष अधिक जेहनी जितनी जघन्य स्थिति, उ० वनस्पतिकाल ज० पृथक् वर्ष अधिक ३१ सागर, उ० संख्याते सागर ज० ३ समय ऊणी जेहनी जितनी जघन्य स्थिति कहनी, उ० उत्कृष्टी स्थितिमे १ समय ऊणी कहनी ज० समय, उ० १ अंतर्मुहूर्त देशबन्धान्तरम् ज० अंतर्मुहूर्त, उ० वनस्पतिकाल ज० अंतर्मुहूर्त, उ० वनस्पतिकाल ज० अंतर्मुहूर्त, उ० वनस्पतिकाल ज० पृथक् वर्ष, उ० वनस्पतिकाल ज० पृथक् वर्ष अधिक, उ० संख्याते सागर
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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